ब्राह्मणवादी इंडिया भूखंड का सबसे बड़ा आतंकवादी।

जातिवाद जितना पुराना बताया जाता है उतना पुराना नहीं है। जातिवाद का रचनाकार ब्राह्मण कोई आर्य रेस से नहीं है क्यों के आर्य एक पालि शब्द है और बौद्धवाद से जुड़ा है। अगर शब्द देशी हो लोग कैसे विदेशी हो सकते हैं? जातिवाद धर्म के आड़ में बना एक घटिया पोलिटिकल विचारधारा है जो अपराधियों को रूलिंग क्लास और इन से पीड़ित वर्ग को उनका गुलाम बनाता है; इसलिए जातिवाद इस भूखंड का संगठित धूर्त अपराधियों का बनाया विचारधारा है । जातिवाद का चार वर्ग सिर्फ काल्पनिक वर्ग है जिस में धर्म के आड़ में कानून बनाकर इंसानों का कर्म और गुण को स्वार्थ के अनुसार विभाजित करके उसका संरक्षण किया जाता है और उस को खानदानी करके उसका पीढ़ी दर पीढ़ी लाभ उठाया जाता है। यानी ये एक तरह इंसान की कर्म और गुणों का फ्रीडम को ब्यान करता है और विचारधारा से आदेशित कर्म और गुणों को वर्गों के लिए कन्जर्भ करता है जो मानवाधिकार का उलंघन है। क्यों के जातिवाद को फैलानेवाले ब्राह्मण हैं और उनका पेशा उनका बनाया हुआ देवताओं के नाम से समाज को नियंत्रण और उस से पोषण पाना है यहि एक मापदंड है इनका मंदिर का फिजिकल एक्जिस्टैंस है तो इनका एक्जिस्टेन्स है। इनका प्रमुख देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं और बाद में कई करोड़ काल्पनिक देवादेवियाँ है। यानी इनका वजूद के लिए पहले इनका त्रिदेव का एक्जिस्टेंस इस धरती में होना जरूरी है बाद में इसका पूजापाठ से इनका रोजगार है । 800AD के आदिशंकराचार्य का भक्ति मूवमैंट से पहले इनका कोई भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का मूर्ति या मंदिर इस भूखंड में नहीं मिलते। ब्रह्मा, विष्णु और महेश का मूर्ति या मंदिर सब 900AD के बाद मिलते हैं जो प्रत्यक्ष प्रमाण कर देता है इससे पहले इस भूखंड में सिर्फ एक प्रमुख विचारधारा था और वह है बौद्धवाद जो असलियत में हिन्दू धर्म है। हिन्दू शब्द पालि शब्द सिन्धु से पैदा एक शब्द है और ये बौद्धवाद से सम्बंधित है; क्यों के हिन्दू शब्द बौद्धवाद से सम्बंधित है, इसलिए बौद्धवाद ही हिन्दू धर्म है । इंडिया से जहाँ जहाँ बौद्धवाद गया वहां जातिवाद नहीं देखने मिलता है; इसका मतलब अगर बौद्धवाद ही हिन्दू धर्म है तो हिन्दू धर्म ना काल्पनिक देवादेवि थे ना इस में जातिवाद था ये सब आदी-शंकरचार्य का जातिवाद मूवमैंट से शुरु हुआ है। बौद्धधर्म तब कई सेक्ट में तोड़ दिया गया था जैसे हीनजन यानी नीच लोग या पिछड़ा वर्ग जिसको अलंकृत भाषा में हीनयान यानी नीच मार्ग बताया गया और दूसरा महाजन यानी ऊंचे लोग या अगड़ी वर्ग यानी अलंकृत भाषा में महायान यानी उर्ध मार्ग बताया गया । हीनयान ही असली बौद्धवाद था जिसको राजा अशोक ने फैलाया था और इस में सिर्फ बौद्ध चैत्य और स्तूप मिलेंगे जिसको बाद में जातिवादी धूर्तों ने अपना शिव का गुप्तांग या लिंग बता कर अपभ्रंश किया और सब हीनयान वाला चैत्यवाले मंदिरों को कब्जा करके अपना शिव का लिंग बताया और वहां से शिवलिंग का पूजा करने की प्रथा शुरु किया। चैत्य और स्तूप इंसान की खोपड़ी की हिस्सा का प्रतीक था जो इंसान की बुद्धि का घर होता है। चैत्यों में किसी बौद्ध सन्यास की शरीर का कुछ निशानी रख कर उस प्रतीक को उन की चेतना जगाने के लिए इस्तेमाल होता था इसलिए उनको चैत्य कहाजाता था । हिनयानवाले कभी भी बुद्ध का मूर्ति नहीं बनाया और उन को सिर्फ गुरु यानी एक टीचर और महापुरुष समझा। बौद्धधर्म के कुछ सन्यास बौद्धवाद आगे बढ़ाने के लिये ग्रीक सभ्यता मूर्त्तिवाद से प्रेरित होकर ग्रीक इन्फ़्लुएंस में बुद्ध चरित्र का एक काल्पनिक मूर्ति बनाया और इसको ही विचारधारा की प्रतीक के स्वरुप इस्तेमाल किया। इस में भक्तिवाद जोड़ा और वाद में बुद्ध को छोड़कर बुद्धिसत्ताओं और बौद्धधर्म को आगे बढ़ानेवाले महापुरषों की मूर्ति बननेलगे; बाद में बौद्धवाद में पाखंड, भ्रम भी शामिल होने लगा और ये बज्रयान, तंत्रयान ऐसे कई सेक्ट बनने लगे लेकिन इस कमजोरी का फायदा यहाँ के संगठित अपराधी वर्ग यानी जंगली, डाकू, चोर, ठग, धूर्त बुद्धि के उपद्रवी और बाहुवली जैसे लोग उठाने लगे बाद में ये भगवा पहन कर संगठित होकर हिन्दुधर्म यानी बौद्धवाद को ही हाईज्याक कर लिया खुद का बनाया हुआ जातिवाद को ये संगठित होकर अंजाम दिया। तब का राजा महाराज, व्यापारी और ये पाखंडी जातिवादी रचनाकारों का एक संगठित सांठगांठ हो गया और जातिवाद को उनके क्षेत्र में छल और बल से इम्प्लीमेंट किया। इनको विरोध करनेवाले बौद्ध सायन्सों का कत्लेआम हुआ और जो बेईमान सन्यासी इनके साथ दिए वह हिन्दुधर्म यानी बौद्धवाद को हत्या और इसका अपभ्रंश करने में भरपूर साथ दिया; जो संगठित धूर्त इंटेलेक्ट वर्ग जातिवाद सोच का रचनाकार बनें वह ही ब्राह्मण हैं। इसलिए ये सिर्फ एक वैचारिक वर्ग है कोई रेस नहीं। ये विचारधारा जैसे जैसे इस भूखंड का हर प्रान्त में फैलता गया जैसे आज एक पोलिटिकल पार्टी फैलता है उस तरह वहां के निवासी बौद्धवादी अवर्ण से वर्णवादी बनते गए ; इस विचारधारा को पहला अडॉप्ट करके फ़ैलाने वाले पूर्वज ही सवर्ण बनें और जातिवाद का मलाई खाया; सबसे घटिया बात ये है इस विचारधारा को अपना कर वह कोई दूसरा भूखंड का लोगों की उत्पीड़न और शोषण नहीं किया बल्कि खुद की भाषीय सभ्यता के लोगों को ही उत्पीड़न और शोषण किया । इस भूखंड का हर प्रान्त में बौद्धवाद था और जहाँ ये जातिवाद अपनाया वर्ग छल बल से फैलना सुरु किया वह पहले बौद्ध मंदिरों को कब्ज़ा किया और अपना काल्पनिक देवादेवियों की मूर्तियों से इसको रिप्लेस किया या बुद्धकी मूर्ति से छेड़छाड़ करके उनका काल्पनिक देवता बताया । इसलिए यहाँ हर प्रान्त में कई तरह का देवादेवी बनने लगे। वेस्टबंगाल में काली बनने लगा, UP में बन्दर देवता हनुमान, सिन्ध में झूलेलाल, महाराष्ट्र में हाथी सर वाला गणेश, ओडिशा में अपाहिज विष्णु अवतार इत्यादि इत्यादि । जातिवाद को सिर्फ हर भाषीय सभ्यता के वहां का धूर्त अपराधी वर्ग ही अपनाया और सवर्ण बनकर उस प्रान्त का हिन्दुधर्म यानी बौद्धवाद का हत्या और अपभ्रंश किया; इनके विचारधारा को विरोध करनेवाले उस प्रान्त का निवासियों को ये अछूत और आउटकास्ट बताया और गुलामों को शूद्र। इनके विचारधारा विरोधी पूर्वजों को धर्म के आड़ में कई तरह का कानून बनाकर उनसे सब लूट लिया, उनको गरीब, मुर्ख और पिछड़ा बनाया और आज भी उनके पीढ़ियों को ये दलन करते आ रहे हैं और उन को सामाजिक पहचान दलित दिए हुए हैं । अगर आप सोचते हो ब्राह्मण कोई रेस है ये सम्पूर्ण रूप से गलत है। अगर ये रेस होते तो इनका मातृभाषा एक होता और सरनेम भी एक होता जैसे की ये नहीं हैं, और भाषा और प्रान्त बदलने से इनके चेहरे और रहन सहन का ढंग भी बदल जाता है। कश्मीर का ब्राह्मण, तमिलनाडु की ब्राह्मण का भाषा भी समझ नहीं पाता और उनके सरनेम्स प्रान्त बदलते ही अलग अलग हो जाते हैं; इंडिया का 6 करोड़ आबादीवाला ब्राह्मणों का 500 से ज्यादा सरनेम हैं । अगर ब्राह्मण एक रेस के हैं तो यहाँ के क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र और दलित किस रेस के हैं? ये सिर्फ जातिवाद का वैचारिक वर्गों से संगठित हैं; असली रिश्ता उनके भाषीय सभ्यता से है । यानी जो असवर्ण जिस भाषीय सभ्यता से बिलोंग्स करता है वह उस भाषीय सभ्यता के जातिवाद से बना उत्पीड़क वर्ग सवर्णों से पीड़ित वर्ग है । कश्मीर दलित का कन्याकुमारी दलित से कोई रिश्ता नहीं है; सिर्फ कश्मीर का दलित कश्मीर सवर्णों का सताया हुआ सोषित और उत्पीड़ित वर्ग है और कन्याकुमारी का दलित कन्याकुमारी सवर्णों से सताया हुआ सोषित और उत्पीड़ित हुआ वर्ग है । जातिवाद ही इस भूखंड की धर्मांतीकरण का प्रमुख कारण है। अगर आप जाती के नाम पर उन को अच्छे जिंदगी का अधिकार, विद्या की अधिकार, धन की अधिकार, इज्जत और गरिमा का अधिकार, न्याय की अधिकार, अवसर की अधिकार, अच्छे बृत्तियों करने की अधिकार इत्यादि छीनोगे तो वह दूसरा विचारधारा क्यों नहीं अपनायेगा जो ये अधिकार उन को देता है? यही वजह है हमारे कई मूलनिवासी इस्लाम जैसे दूसरा विचारधारा को कनवर्ट हुए; कुछ लोगों को ना जातिवाद पसंद आया ना इस्लाम तो वह इस्लाम और जातिवाद से अलग और एक धर्म बना डाला जिस को सिख धर्म कहते हैं । जातिवाद की रचनाकारों को सिर्फ गुलाम चाहिये था तो ये बौद्धधर्म, चार्वाक यानी लोकायत जैसे धर्म को समूल नष्ट कर दिया। अगर इस धरती का कोई असली दुश्मन है वह कोई आक्रांता नहीं इस भूखंड का संगठित देशी आतंकवादी ब्राह्मण हैं ।