इंडिया का असली पुराना धर्म यानि प्रमुख विचारधारा बौद्धवाद है जिसको हिन्दू धर्म कहा जाता था। बौद्धवाद इसलिए हिन्दू धर्म है क्यों की हिन्दू शब्द का ओरिजिन कोई विदेशी शब्द से नहीं बौद्ध भाषा पाली शब्द सिन्धु से है । पाली शब्द सिन्धु का मतलव नदी, सागर या समुद्र होता है और क्यों के हिन्दू एक इंसान की सामाजिक पहचान है इसलिए इस शब्द का अर्थ के अनुसार हिन्दू नदी, सागर या समुद्र की भूखंड में बसनेवाला निवासी होता है । बौद्धवाद उपनाम हिन्दू धर्म बौद्धविरोधियों का शिकार हुआ और ये हीनजन(पिछड़े लोग) और महाजन(अगड़ी लोग) से तोडा गया । हिनजन और महाजन को अलंकृत भाषा में हीनयान यानि नीच मार्ग और महायान यानि उच्च मार्ग इत्यादि से भी जाना जाता है । हिनजन ही असली बौद्ध विचारधारा को धारण करता था और इस विचारधारा को राजा अशोक ने फैलाया था । हिनजन में अनुयाई बुद्ध को एक महापुरुष मानते थे और उनकी मूर्त्ति की पूजा को गलत मानते थे; इसलिए ये सम्प्रदाय सिर्फ इंसान का खोपड़ी यानि बुद्धि का जहाँ वास होता है इसका स्ट्रक्चर बनाकर उसमें बुद्ध या बुद्धिसत्ताओं का कुछ देहावबसेष रखकर उसको बुद्धि यानी विचारधारा का प्रतिक मानते थे; जो की चैत्य या स्तूप कहलाता है । चैत्य का मतलव चित्त में जो चेतना जगाये यानि उनकी कही गयी बुद्धामृत की याद यानी चेतना जगाये । लेकिन महायान सम्प्रदाय ज्यादा ग्रीकों की देवादेवी यानि उनकी पोलिथेइस्ट आइडोलजिम यानी मूर्त्तिवाद का सपोर्टर था । ये बुद्ध की एक काल्पनिक मूर्त्ति बनाकर उसको ही विचारधारा की प्रतिक मान्यता दिलाकर उसका प्रचार और प्रसार करना चाहते थे । ग्रीक इन्फ़्लुएंस में ही बुद्ध की काल्पनिक मूर्त्तियां बनी और ये विचारधारा की प्रतिक बना । बाद में इसमें भक्ति और भ्रम का घालमेल भी होना सुरु हुआ । महायान सेक्ट बुद्ध की मूर्त्ति का पूजा किया और हीनयान वाले चैत्य और स्तूप की; इस तरह विचारधारा में दरार पड़ा और इसका फ़ायदा इस भूखंड का संगठित शातिर, धूर्त, बेईमान, ठग, उपद्रवी और बलवायी जैसे असमाजिक मूलनिवासियों का हुआ । जंगली डाकू, चोर, ठग, धूर्त, कपटी, बेईमान, शातिर, बलवायी और उपद्रवी जैसे चतुर असमाजिक लोग भगवा पहन कर संगठित होकर हिन्दूधर्म उपनाम बौद्धवाद पर कब्जा किया और उनकी बनाई जातिवाद यानि खानदानी वंशवादी बृत्ति सरंक्षण का विचारधारा को साम, दाम दंड भेद यानि छल और बल से इम्प्लीमेंट किया । इनलोगोंने अपने पसंदिता बृत्तियों को यानि समाज को रूलिंग करनेवाले बृत्तिओं को अपने लिए सरंक्षण किया और सरनेम से इसकी वंशवादी सरंक्षण जारी रखा और दूसरे प्रोफेसनों को ये गुलाम वर्ग यानि शूद्र(OBC) बताया । जिन पूर्वज और उनकी पीढ़ियां इसकी विरोध किया उनको ये आउटकास्ट यानि उनके समाज से बहार बताया यानि इन जातिविरोधियों(Sc) को वह अतिशूद्र कहा और शूद्रों से भी ज्यादा उनकी दलन किया इसलिए ये ज्यादा प्रताड़ित आउटकास्ट लोगों को कुछ दलित भी कहते हैं क्यों के जातिवादी सवर्णों(Organized Criminals)ने इनकी सदियों जमकर दलन यानि उत्पीड़न किया । जो इनके विचारधारा यानि समाज से दूर थे जैसे बन और जंगलों में बसनेवाले मूलनिवासी उन को भी ये आउटकास्ट यानि अतिशूद्र का दर्जा दिया और अब ये ST कहलाते हैं । बौद्ध विरोधी संगठीत अपराधियों का गठबंधन ही जातिवाद का इम्प्लीमेंटेशन करके बौद्धवादियों को जातिवाद में कन्वर्ट किया और धर्म के आड़ में उनसे उनकी बृत्ति, सम्पत्ति और उनके मूल सामाजिक अधिकारों को छीना यानि ऐसे कहो उनके अधिकारों पे डाका डाला । लोगों को जातिवादी बनाकर वह दूसरों की हक़ पर डाका डाला यानि वह सबकी चोरी की । उनके नियम ऐसे थे जिससे ये दूसरों की अधिकारों का चोरी किया । शूद्रों और अतिशूद्रों को ये अच्छी जिन्दगी के अधिकार से सदियों बंचित रखा यनि ये इनकी अच्छी जिंदगी पर डाका डाला यानि इनकी अच्छी जिंदगी की चोरी किया । ये जातिवादी डाकू इनसे सिक्ष्या यानि ज्ञान की अधिकार भी छिना यानि इनका ज्ञान यानि सिक्ष्या भी चोरी किया और उनको मुर्ख बनाया । इनका स्वतंत्र रोजगार और स्वतंत्र सम्भोग का धिकार को भी छिना यानि इनका रोजगार का स्वतंत्रता और ओपरच्युनिटी को चोरी किया । इनका धन और संपत्ति का अधिकार छिना यानि इनकी धन और संपत्ति का उपर भी डाका डाला और उनको गरीब बनाया । इनका सामाजिक समानता और गरिमा भी छिना यानि इनकी सम्मान की भी चोरी किया । ऐसे गिनते जाओ इनकी चोरी और अपराध की गिनती कभी ख़तम नहीं होंगे । ये बौद्धवाचारधारा यानि हिन्दू धर्म का भी चोरी किया और विचारधारा की भ्रष्टाचार किया । ये असलियत में संगठित खानदानी डाकू और चोर हैं जो खुद को सवर्ण बोलकर आजतक हमें मुर्ख बनाते आरहे हैं । जातिवादी संगठित डाकुओं ने हीनयान की बौद्ध चैत्य और स्तूपों को उनके काल्पनिक चरित्र शिव का गुप्तांग यानि लण्ड बताया और महायान सेक्ट की मंदिरों को कब्जा करके अपने काल्पनिक चरित्रों की देवादेवियों को भरकर धर्म का धन्दा चलाकर अंधभक्तों से करड़ों लूटा । लूटना जिनका खानदानी काम है वह खानदानी लुटेरें नहीं है तो क्या हैं ??? शंकराचार्य, माधवाचार्य और रामानुज जैसे जातिवादी प्रचारक गुंडे और उनके चोर, ठग, डाकुओं की संगठित दल 800AD के बाद सम्पूर्ण रूपसे बौद्धविचारधारा पे डाका डाला और कई मुख्य बौद्ध सम्पदा पर कब्ज़ा करके अपना मठ और अखाडा बनाया; जिनकी आज की भैल्यू 100 लाख करोड़ से भी ज्यादा होंगे । अंधभक्तों से इनकी सालाना लुटाई करीब 7 लाख करोड़ या उससे भी ज्यादा हैं । धर्म के आड़ में दूसरों का हक़ और अधिकार पे डाका डालना विचारधारा है जातिवाद । इसलिए इस विचारधारा को चलानेवाले यानि सवर्ण संगठित खानदानी डाकू, लुटेरे, चोर, ठग, बेईमान और बलवाई पूर्वजों की वंसज हैं । कई जातिविरोधी पूर्वजों की पीढ़ियां और शूद्र पूर्वजों की पीढ़ियां कई दूसरे गैरजातिवादी विचारधारा अपना लिए हैं और ये अब मुस्लिम, सिख और ईसाई बनचुके हैं । इंडियन ओरिजिन का मुस्लिम अब 55 करोड़ से भी ज्यादा होंगे जिनमें सिर्फ 3% भी कम बाहरी नस्ल से होंगे और उनकी सत्ता भी इस भूखंड में विलीन हैं । करीब 3 करोड़ जातिविरोधी पूर्वजों की पीढ़ियां सिख बनचुके हैं और करीब 3 करोड़ ईसाई बनचुके हैं जिनका असली कारण सिर्फ और सिर्फ ये खानदानी संस्कारी जातिवादी चोर, डाकू और लुटेरों की वंसज हैं ।
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