मानसिक गुलामी छोडो …..!!!

मैं उस “भारत” से हूँ जहां “हराम” का खाने वाले “आरक्षण” का विरोध करते है । और “आरक्षित” सीट पर चुनकर आने वाले “नेता” अपने ही समाज के खिलाफ उन “हरामखोरों” का साथ देते हैं ……!!!


अगर “मानवता” की “रक्षा” करना है तो “आतंकवाद” के “जनक” “धर्म ग्रंथों” को आग लगा दो…..!!!
फिर “हिन्दू बचाओ” ,
“मुस्लिम बचाओ”
कहने की जरूरत नहीं रहेगी…..!!!


अपनी आँखों से “जाति धर्म” का चश्मा हटाकर देखिये; देश में बढ़ती गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, महँगाई, भ्रष्टाचार के अलावा और कुछ नजर नहीं आयेगा….!!!


हर धर्म गुरु यही कहता है सर्वशक्तिमान को खोजने में जीवन खपाना पड़ता है, कोई तर्क कर लेता है तो अंत मे धौंस दिखाई जाती है कि आस्था पर सवाल खड़े नहीं किये जाते….!!!

ये विकल्प नहीं लूट व शोषण की ऐसी दुकाने है कि अगर एक से बच गए तो दूसरी फंसा लेगी..!!


इंडिया में तर्क करने लायक जनता जागरूक होगी तभी तो तर्कसंगतता गति पकड़ेगी???


गरीब-अनपढ़-लाचार लोगों का जमावड़ा विज्ञान को समझने लायक होगा तभी तो अज्ञानता रूपी खड़े किए ईश्वर व उसके नाम पर धर्म का धंधा कर रहे लोगों के विरुद्ध बगावत होगी…!!


पुरातात्विक साक्षों में ऋग्वेद जो सबसे पुराना कहा जाता है उसको World heritage में शामिल करवाने के लिए साक्ष्य जो जमा करवाये गये हैं वो एक पांडुलिपि है जो 1464 ई. की है और ये पांडुलिपि धम्म लिपि में लिखी हुई है जिसको तुम लोग ब्राह्मी लिपि के रुप में प्रचारीत करते हो..!!


मनुस्मृति नहीं, संविधान चाहिए। धर्म नहीं, अधिकार चाहिए। मन्दिर नहीं, स्कूल चाहिए ।
भगवान नहीं, विज्ञान चाहिए ।भाषण नहीं, रोजगार चाहिए । पूंजीवाद नहीं, समाजवाद चाहिए । धर्मतन्त्र नहीं, लोकतंत्र चाहिए। असमानता नहीं, समानता चाहिए । अनेकता नहीं, एकता चाहिए….!!


चमड़े का “आविष्कार” चर्मकार ने किया,
धरती का सीना चीरकर अन्न “किसान” ने पैदा किया,दूध की नदियां “पशुपालकों” ने बहाई, मजदूर कामगार और कारीगरों ने विशाल “सभ्यता” के निर्माण में अहम भूमिका निभाई, “ब्राह्मणों” ने श्रम उत्पादन में कभी कोई योगदान नही दिया, ये सिर्फ लोगों को मुर्ख बनाकर उनको ठग कर उनकी शोषण करके हराम का खाया..!!


विज्ञान कहता है RO का पानी पिओ,
धर्म कहता है मूत्र पिओ,
अपनी अपनी पंसद से आप लोग पिएं…!!


जाति, धर्म, मज़हब के रहते देश मे “एकता” की बात करना बेवकूफी और गधागिरी के सिवाय कुछ भी नही है…!!


उन डिग्रियों का कोई फायदा नही जिनको हासिल करने बाद भी तुम पत्थर पूजते हो….!!


इंडिया में मठ, मंदिर, अखाड़ों के पास 100 लाख करोड़ से अधिक मूल्य की भूमि और अन्य संपत्ति है। यह भूमि राजा महाराजा, मुग़ल बादशाह, ज़मींदार, धन्ना शेठ और विधवा महिलाओं के दान से अर्जित की गई संपत्ति है; इन्हीं संपत्तियों के लिए अपराधी हिस्ट्रीशीटर पैर दबाकर साधु बनते हैं और गला दबाकर महंत बनते हैं।


एक तरफ कहते हैं कि “पूजा पाठ” करो, ईश्वर को याद करो तुम्हारा समाधान होगा और जब कोई समाधान नहीं निकलता है, तब पाखंडी कहते है, कि होनी को कौन टाल सकता है, सब कुछ ऊपर वाले के हाथों में है….!!

इसीलिए बेहतर होगा कि अपना दीपक स्वयं बनो.!!

धर्म के ठेकेदारों की गुलामी छोड़ो…!!


सवर्ण, ब्राम्हण/क्षत्रिय/वैश्य महिलाओं को देश मे सरकारी नौकरी पर सैलरी का हक़; आर्थिक, सामाजिक और गरिमा का अधिकार और आजादी बाबा साहब अम्बेडकर के भारत के “संविधान” और “हिन्दू कोड बिल” से मिली है…..!!


शराब के नशे से गरीब का घर बर्बाद होता हैं, और इस तथाकथित “धर्म /मजहब” की अफीम से घर, समाज, बच्चों का भविष्य और देश सब बर्बाद होता हैं…!!


हम देवादेवियों को नारियल चढ़ाने से अच्छा कुत्तों को रोटी खिलाने को ज्यादा बेहतर समझते हैं…..!!


जीवन में अधिकतर समस्याएं दो वजहों से हैं
पहली — बिना सोचे, कुछ भी करते चले जाना
दूसरी — बिना कुछ किए, लगातार बस सोचते ही रहना…!!



मुख पुत्रों जरा ये तो बताओ की खीर खाने से बच्चे पैदा करने की टेक्नॉलजी तुम्हारे पास है या आरक्षण के कारण विलुप्त हो गयी 🤣🤣



मुफ्त खोर “ब्राह्मणों” ने “श्रम उत्पादन” को “गंदा” और “दोयम” दर्जे का कार्य माना; खुद श्रम उत्पादन से दूर हो गए और “उत्पादनकर्ता” को अपने “धर्म ग्रंथों” में “नीच” घोषित किया; घटिया कौन है?…!!


चोर डाकू ठग शातिर धूर्त ब्राह्मणों ने :
मंदिर दिखाकर, हम से शिक्षा छीनकर शिक्षा की चोरी किया !!
मंदिर दिखाकर, हम से अच्छी जिंदगी और अच्छी स्वास्थ्य की चोरी की !!
मंदिर दिखाकर, हम से रोटी और धन संपत्ति का अधिकार को चोरी किया !!
मंदिर दिखाकर, हम से गरिमा और अवसर की चोरी किया !!
मंदिर दिखाकर, हम से समानता का अधिकार की चोरी की !!
मंदिर दिखाकर, हम से अच्छे रोजगार छिना और उसका भी चोरी किया !!
मंदिर दिखाकर, हम से सही न्याय की भी चोरी किया !!
और ये खुद को श्रेष्ट कहते हैं!! श्रेष्ठ तो हो लेकिन श्रेष्ट क्रिमिनल ही हो!!!


आप अपनी “बुद्धि” से 10 रुपये का “नोट” नहीं “जला” सकते, लेकिन “पाखंड” आपसे 700 रुपए किलो वाला “घी” जलवा देता है…….!!!!


“अंधभक्ति” और “मानसिक गुलामी” एक ऐसी “बीमारी” है जो “गोबर” को पुजवाती है, “दूध” को फेंकवाती है और “तेल-घी” को जलवाती है…!!!


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