क्या आप को पता है, असलियत में दलित कौन है ?

जात और धर्म के नशेड़ी घटिया सोच कितना घटीया सोच हो सकता है, जब एक नारी का उत्पीड़न होता है उससे साफ़ पता चलता है; एक नारी दूसरे नारी के उत्पीड़न का आवाज भी जात और धर्म के आधार पर तय करता है???…..रिग वेद का परुष सूक्त से वर्ण पैदा हुए यानि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र पैदा हुए । एक पुरुष के बॉडी पार्ट्स से ये लोग गाय, घोड़े, सूरज, चाँद, स्वर्ग और वेद मंत्र पैदा करदिये लेकिन औरत को पैदा करना भूल गए । क्या पुरुष से नारी पैदा हो सकती है? अगर पुरुष से सब कुछ पैदा हुआ है तो नारी को किसने पैदा किया? अगर नारी को पुरुष ने पैदा किया तो क्या हम ये मानले पुरुष ही नारी का माँ है? अगर पुरुष ने नारी को पैदा नहीं किया इनको किसने पैदा किया? क्या ये सब एलियन है???


Purusha sukta (puruṣa sūkta) is hymn 10.90 of the Rigveda, dedicated to Purusha, the “cosmic man”. It has 16 verses, 15 in the anuṣṭubh meter, and the last on in the triṣṭubh meter. It is the only Rigvedic hymn dedicated to Purusha, and thus, even though appearing in a late book of the Rigveda, the oldest attestation of the Purusha myth.Purusha is described as a primeval giant, not unlike Norse Ymir, that is sacrificed by the gods (see Purushamedha) and from whose body the world and the varnas (castes) are built. He is described as having a thousand heads and a thousand feet. He emanated Viraj, the female creative principle, from which in turn the world was made.In the sacrifice of Purusha, the Vedic chants were first created. The horses and cows were born, the Brahmins were made from Purusha’s mouth, the Kshatriyas from his arms, the Vaishyas from his thighs, and the Shudras from his feet. The Moon was born from his spirit, the Sun from his eyes, the heavens from his skull. Indra and Agni emerged from his mouth.

https://en.wikipedia.org/w/index.php?title=Purusha_Sukta&oldid=44783878

क्या आप को पता है कौन है ये दलित? इनको दलित क्यों कहा जाता है? सायद आप लोगों को पता नहीं होगा; ये बात ना हमें इतिहास में सही तरह मिलता है, ना हमें एकेडेमिक्स में सही तरह पढ़ाया जाता है। सो कॉल्ड फादर ऑफ़ नेसन १९४७ के दौर में इनको हरिजन भी बोल दिया था; मतलब गॉड से पैदा संतान जिसका आप्पत्ति डॉक्टर अमबेडकर ने भी किया था; वह इसलिए, मन्दिरों में देवदासी प्रथा जब प्रचलन थी तब देवदासियां मंदिरों की पुजारियों के यौन प्यास बुझाते थे उसके इलावा जो शरणार्थी मंदिर में आते थे वह भी उन देवदासियों का यौन उत्पीड़न करते थे; और उनसे पैदा संतान नाजायज होते थे, क्यों के गॉड के मंदिर में पैदा वे संतान होते थे, इसलिए उनको हरिजन कहा जाता था। इसलिए डॉक्टर अमबेडकर ने दलितों केलिए इस सब्द का इस्तेमाल में आप्पति किया था। लेकिन दलित कौन है उसका एक इतिहास है; वह इतिहास बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है । जो बेईमान इतिहासकार और साहित्यकार ये बोलते हैं वैदिक जातीय व्यबस्था इस भूखंड का पुरानी प्रमुख विचारधारा थी वह दरअसल हरामखोर झूठे बेईमान इतिहासकर और साहित्यकार है। मेरा “हरामखोर, झूठे, बेईमान” शब्दोंका इस्तेमाल सम्पूर्ण रूपसे सही है इन हरामखोरों केलिए क्यों के इन्होने ही हमारे पीढ़ियों को सचाई से दूर रखा और कई भ्रम पैदा किये जिससे समाज में गन्दगी फैलती गयी और अब जो हो रहा है वह हरामखोरों इंटेलेक्चुअल क्रिमिनल्स केलिए ही है । इस भूखंड का सबसे बड़ा प्रमुख धर्म बौद्ध धर्म था ना की वैदिक धर्म । ये भूखंड समय के कालखंड में कई राजाओं का भूखंड रहा और ये भूखंड कई विचारधाराओं की जननी भी रही । यहाँ नास्तिकवाद ही सबसे बड़ा प्रमुख धर्म था जैसे बौद्ध धर्म, चारुवाक, आजीविक और लोकायत इत्यादि इत्यादि; और एक धर्म जो बौद्ध धर्म को अपभ्रंश करके उसको तोड़ने केलिए बौद्ध विरोधियों ने उनका एक बी टीम के तौर खड़ा किया था जिसको हम जैन धर्म कहते है वह भी नास्तिक धर्म को ही रिप्रेजेंट करता है । इन विचारधाराओंसे लोग तार्किक और ज्ञानशील बनते थे इसलिए यहां के बेईमान हिंसावादी धूर्त्त लोग गॉड के ऊपर आधारित एक विचारधारा बनायीं जो झूठे काल्पनिक सोच पर आधारित था और वह सोच नशीला और आकर्षक था जिससे भोलेभाले लोगों को अपना सोच का शिकार बनाकर उनको अंधविस्वाशी बनाकर सदियों उनको मानसिक तौर पर गुलामी करवाई जा सके इसलिए वह अपने विचारधारा में कई कई देवादेवि बनाये और उनके रिप्रेजेंटेटिव बनकर लोगोंका मन और जीवन को कंट्रोल करने लगे । प्रमुख बृत्तियों को अपने और अपने पीढ़ियों केलिए सरंक्षण करने केलिए वर्णवाद बनाया जो रिग वेद का पुरुष सूक्त १०.९० में बर्णन किया गया है। ये धूर्त्त बुद्धिजीबी एक जीव को मारकर उससे जीवन भी पैदा करदेते है । एक पुरुष मतलब मेल को मार के उसके बड़ी पार्ट्स ये दुनिया बनायीं; उनका डेफिनेशन के अनुसार पुरुष का एक हजार सर और एक हजार पैर थे जिसको देवताओं के सामने काटा गया यानि बलि दी गयी, जिससे घोड़े और गाय पैदा हुए । वैदिक मंत्र पैदा हुआ; मुख से ब्राह्मण(वेद को मान्यता देनेवाले पुजारी) पैदा हुए, भुजाओंसे क्षत्रिय (वेद को मान्यता देनेवाले राजाओं), वैश्य (वेद को मान्यता देनेवाले ब्योपारी) और इन प्रमुख सामाजिक प्रोफेसन को छोड़कर जितने भी प्रोफेसन रहे वह सब शूद्र बनादिये गए कोई भी उनकी पसंद के बगैर । जो इस विचारधारा के बहार थे या इस विचारधारा को स्वीकार नहीं किया उनको आउट कास्ट या अजाती या अछूत या अतिशूद्र का मान्यता दी गयी। आदिवासी इनके जातीय व्यस्था से दूर थे इसलिए उनको भी आउट कास्ट यानि अतिशूद्र कहा गया । इस विचारधारा को अपनाया हुआ मुलनिवाशी और इस विचारधारा को रिजेक्ट किये हुए मुलनिवाशी में हमेशा वैचारिक दुश्मनी रही । शूद्र और अतिशूद्र केलिए वैदिक विचारधारा बनाने वाले लोग अच्छे जीवन, सही न्याय, सम्मान की अधिकार, ज्ञान की अधिकार, संपत्ति का अधिकार, गरिमा के अधिकार इत्यादि गॉड के नाम पर नियम बना के हमेशा केलिए छीन लिया ताकि उनके पीढ़ियां उनका सदियों केलिए गुलाम बना रहे;ज्यादातर वैदिक विचारधारा विरोधी पूर्वज के पीढ़ियां ही इनका ग़ुस्से का ज्यादा शिकार रहे और इनका पीढ़ियों को ये लोग हरतरह का तबाह करनेका हमेशा काम किया और उनकी जबरदस्त सदियों उत्पीड़न किया वह भी सब धर्म और गड के नाम पर। ज्यादातर वैदिक विचारधारा विरोधी पूर्वज के पीढ़ियां ही इनका ग़ुस्से का ज्यादा शिकार रहे और इनका पीढ़ियों को ये लोग हरतरह का तबाह करनेका हमेशा काम किया और उनकी जबरदस्त सदियों उत्पीड़न किया वह भी सब धर्म और गड के नाम पर । उनको वैचारिक और सामाजिक रूपसे सदियों दलन के कारण समाय के साथ उनको दलित भी कहा जाने लगा; लेकिन ये दलित कोई और नहीं वैदिक विचारधारा को रिजेक्ट करने वाले बुद्धिजीवी बर्ग के पीढ़ियां से ही है; वह कोई भी नास्तिक विचारधारा के पूर्वजों से बीलोंगस कर सकते है, ज्यादातर बौद्ध विचारधारा के पूर्वजों के पीढ़ियों से ही है; इसका मतलब ये नहीं, इन के पूर्वज चारुवाक, आजीविक और लोकायत इत्यादि इत्यादि विचारधारा बर्गों से नहीं थे । बौद्ध धर्म के विनाश के कारण समय के साथ साथ ये पीढ़ियां नास्तिकवाद विचारधारा जितने भी धर्म थे यानि विचारधारा थे उससे भी दूर हो गए; समय के साथ इन धूर्त्तों ने पूर्व जन्म और पर जन्म का शातिर विचारधारा फैला के उनके जीवन को और भी नर्क बनादिया और कहा तुम ऐसे हो क्यों के पूर्व जन्म में तुमने पाप किया था इत्यादि इत्यादि । इस से समाज में समानता का खाई बढ़ती गयी और फुट डालो राज करो सर चढ़कर बोलने लगा । हर भाषिय समाज के झूठे, बेईमान, धूर्त्त, कपटी, उपद्रवी, बाहुबली श्रेणीके लोग इस विचारधारा का भरपूर इस्तमाल किया और बौद्ध और अन्य बुद्धि सम्पन्न विचारधाराओं को अपना और अपने सांगठनिक स्वार्थ केलिए सदियों नष्ट करदिया । ये लोग बौद्ध सन्यासन को भी नहीं छोड़ा । इनको मंदिरों में देवदासी बनाकर उनके काल्पनिक देवताओं मूर्त्ति के सामने नंगा नचवाया और उन की यौन उत्पीड़न भी सदियों किया । जब 700AD में कुछ बिदेशी आक्रांताओं इस्लाम विचारधारा लेकर यहाँ आये वह साशक बर्ग के कारण यहाँ के लगों को दूसरे विचारधारा अपनाने का मौका मिला । आक्रांताओं ने जोर जबरदस्ती भी काइयोंको अपना विचारधारा में शामिल किया होगा लेकिन सामाजिक असमानता और बुनियादी सामाजिक अधिकारों केलिए कई लोग जो वैदिक विचारधारा से उत्पीड़ित बर्ग थे इस्लाम विचारधारा अपनालिया। इसका मतलब ये नहीं वैदिक विचारधारा का सबर्ण वर्ग इस्लाम विचारधारा अपनाया नहीं था। पाकिस्तान का स्पिरिचुअल फादर कहलाने वाले मुहम्मद इक़बाल के पूर्वज साप्रू क्लान के कश्मीर पंडित थे और पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अल्ली जिन्ना के पिता और दादा जी गुजराती बनिया थे; जिन्होंने वैदिक विचारधारा के उत्पीड़न के कारण इस्लाम कबूला था। इस्लाम में अच्छे जिंदगी बिताने वाले लोग वैदिक विचारधारा के सबर्ण से नहीं होंगे उसको नकारा भी नहीं जा सकता। वैदिक विचारधारा से उत्पीड़ित बर्ग जो इस्लाम क़बूले थे विचारधारा अपनाने के बाद भी वही गरीब और अनपढ़ की जिंदगी में जीते है जो की ज्यादातर शूद्र, अतिशूद्र या दलित कहलाने वाले बर्ग से हैं; यानि वही दलित जिनके पूर्वज वैदिक विचारधारा को रिजेक्ट किया था और बाद में दुसरी धर्म या विचारधारा अपनाये; लेकिन उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति अब वैसे ही है । असली अपराधी असलियत में एक विचारधारा है वह है वैदिक विचारधारा जो सदियों इस देश को तबाह करके रखा है । यहाँ के मुस्लिम मुलनिवासी जो पाकिस्तान, इंडिया और बांग्लादेश में रहते हैं जिन के लोग संख्या करीब ५५ करोड़ से भी ज्यादा होंगे, उन में से केवल ३% से भी कम बाहरी मुल्क के नस्ल से है और बाकी सब इस भूखंड के नस्ल ही है। और ये ३% नस्ल का पहचान भी इस भूखंड में लीन है बस अब अपने लोग और उनके वैचारिक लड़ाइयां है। वैचारिक उत्पीड़न और वैचारिक लड़ाई को ख़तम करने की कोई भी लोकतंत्र पार्टी का मनसा नहीं है जब की इसको ही वह अपने पॉलिटिक्स केलिए इस्तेमाल करते आ रहे हैं। यानि कुर्सी केलिए लोगों को वैचारिक गुलाम और मानसिक बिकृत बनाये रखना इन पॉलिटिकल पार्टियाँ का मूल एजेंडा है और नैतिकता, जस्टिस और मानविकता, झूठे राष्ट्रवाद सब दिखावा है । ये मैन्युफैक्चर्ड क्राइम करवाके लोगों के सेंटीमेंट के साथ खेलने से भी नहीं चूकते हैं। इनके जबतक वैचारिक सुधिकरण नहीं होगा तबतक अच्छे लोकतंत्र के नेता पैदा नहीं होंगे; और जबतक अच्छा लोकतंत्र का नेता पैदा नहीं होंगे देश का भबिष्य कभी भी सुरक्षित नहीं होगा । हमारे देश का अच्छे लोकतंत्र नेता का अकाल पड़ा है लेकिन अपराधी धूर्त्तों की कमी नहीं है । दलित कोई गंदे नस्ल के पीढ़िया नहीं है; ये बुद्धिजीवी और कुलीन बर्ग के पीढ़ियों से थे; और उनको उनके पूर्वज बुद्धिजिवि और वैदिक विरोधी होनेका दुश्मनी सदियों निकाला जा रहा है।






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