डिकोडिंग जाति (Caste)

कास्ट सिस्टम को समझने केलिए आप को पहले ये समझना होगा ये एक विचार है या ये प्राकृतिक है।  प्राकृतिक मतलब क्या प्रकृति ने वर्ण यानि कास्ट सिस्टम बनाया जैसे कई तरह जीव और उनके लिंग बनाया या ये एक इंसान का बनाया विचारधारा है।  कास्ट/जात क्या है और ये कहाँ देखने मिलता है और इसकी ओरिजिन क्या है? पहले कास्ट क्या है जानते हैं। जात एक पाली शब्द है और इसका अर्थ जन्म से है पेशे से नहीं अगर आप इंसान की जैसे दीखते हो तो आप एक इंसान से जन्म हुए हो, इसलिए आप की जात इंसान है; अगर एक जीव शियार का जैसे दीखता है तो उसका जन्म एक शियार से हुआ है, इसलिए उसका जात सियार है अगर एक ही तरह की खाना को इंसान, सूअर, हाथी, भेड़ और गाय को दिया जाये तो उनकी मल को देखकर कोई भी जानकार इंसान बता सकता है किसका मल किस जिव का है; क्या आप एक ही तरह की खाना को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को खिला के उनके मल से ये पता कर सकते हो कौनसा ब्राह्मण का है, कौनसा क्षत्रिय, कौनसा वैश्य और कौनसा शूद्र का है? पता नहीं कर सकते हो ना!  क्यों के ये एक जाती के हैं वह है मनुष्य के जाती।  जाती जन्म से जुड़ा है पेशे से नहीं। लेकिन धूर्त्त ब्राह्मणों ने जन्म को पेशे के साथ जोड़ा और पेशे को वंशवादी करके दूसरों को पेशे की स्वतंत्रता से रोका और लाभ दायक वंशवादी पेशे से संशाधनो और ऑपर्च्युनिटी पर कब्ज़ा करके समाज का रूलिंग क्लास बनगए । कोई भी इंसान की बच्चा को Educational Environment का Experience दो वह वही बनसकता जो वह बनना चाहता है और इस चीज का कंट्रोल ब्राह्मणों ने अपनी काल्पनिक जातपात धर्म बनाकर किया और इंडियन भूखंड की 97% से ज्यादा निवासियों का जिंदगी को नर्क और बर्बाद किया । कास्ट यानि वर्णव्यबस्था विचारधारा आपको इंडिया छोड़कर कहीं और दिखने नहीं मिलेंगे; इस हिसाब से ये निश्चित है की ये विचारधारा इंडिया में बना एक विचारधारा है, कोई दूसरे देश का नहीं; अगर ये विचारधारा कहीं और से आता तो वहां की समाज की हालत हम जैसे ही होता ।  अब प्रश्न उठता है इंडिया में कई तरह की विचारधारा पैदा हुआ है; ये विचारधारा को बनानेवाले मुलनिवाशी कौन हैं और कहाँ इसकी सोर्स है?  जाहिर है यहाँ के बौद्ध(हिन्दू), जैन, सिख या बिदेशी विचारधारा जैसे इस्लाम या ईसाई विचारधारा इत्यादि में ये सोच नहीं मिलता बस एक विचारधारा में ये सोच मिलता है जिसका नाम है ब्राह्मणवाद या वर्णवाद या जातिवादी विचारधारा मैं, जो अपने आपको अब हिन्दू  बोलकर प्रमोट करते हैं लेकिन ये असलियत में हिन्दू नहीं जातिवादी हैं; वह क्यों है आप को आगे पढ़ कर पता चल जायेगा ।  अब प्रश्न उठता है ये जातिवाद वर्ण का डेफिनेशन क्या है और कहाँ मिलता है; जातिवाद वर्ण का डेफिनेशन का प्रमुख सोर्स ऋगवेद का पुरुष शुक्त 10.90 है और कुछ शास्त्र हैं जो बोलता है ब्राह्मण ब्रह्मा से पैदा हुए हैं।  हम ये दोनों की ही एनालिसिस करेंगे ।  पहला आते हैं ऋगवेद का पुरुष शुक्त 10.90 का डेफिनेशन को।  विकिपीडिया लिंक इस आर्टिकल में एम्बेडेड है क्लिक करके पढ़ लीजिये।  ये यह कहता है की एक “लौकिक पुरुष” था पुरुष शुक्त 10.90 में “लौकिक पुरुष” को एक आदिम विशालकाय  पुरुष के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका एक हजार सिर और एक हजार पैर थे। जिसको देवताओं के द्वारा बलि दिया गया जिस को पुरुषमेध कहते हैं और जिस के शरीर से ये संसार यानि ये दुनिया और वर्ण (जाति) बने हैं जिस में बायोलोजिकल प्रिंसिपल ऑफ़ मेकिंग लाइफ यानि पुरुष और नारी के सम्भोग से बना जीबन की तरिका को  नकारा गया है पुरुष को बलि देने के बाद उसके शरीर के खंडित टुकड़े से पहले वैदिक मंत्रों की रचना हुई घोड़ों और गायों का जन्म हुआ, ब्राह्मण पुरुष के मुख से पैदा हुए यानि वर्णवादी समाज के पुजारी वर्ग पुरुष के मुख से पैदा हुए, भुजाओं से  पैदा हुए क्षत्रिय यानि क्षेत्र से आय करनेवाले मालिक यानि टैक्स कॉलेक्शन करके राज करने वाले लोग यानि जातिवादी राजा वर्ग, जांघों से बने वर्णवादी बनिया क्लास और जितने अलग पेशे के लोग पैदा हुए वह सब पुरुष के पैरों से बने और उनको कहा गया शूद्र (OBC) जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के गुलाम बनें ।  चंद्रमा उसकी आत्मा से, उसकी आंखों से सूर्य, उसकी खोपड़ी से स्वर्ग पैदा हुआ इंद्र और अग्नि उसके मुख से निकले क्या लगता है ये वैज्ञानिक और तार्किक है या कोई झूठ, अज्ञानता, तर्कहीनता, भ्रम, मूर्खता, धूर्तता और अंधविस्वाश के नशे में सत्य, तर्क, ज्ञान, बिज्ञान यानि बुद्धि को बली देकर ही ये विकृत सोच पैदा किया है? अगर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र प्राकृतिक होते तो ये दुनिया के हर समाज में दीखते और जब वह पैदा होते उनके शरीर में अपना ब्रांड छपवाकर आते जैसे ब्राह्मण अपने शरीर में पुरुष का मुख का चिह्न लेकर पैदा होता, क्षत्रिय भुजाएँ का चिह्न लेकर पैदा होते, बनिया यानि वैश्य पुरुष का जांघ चिह्न लेकर पैदा होता और शूद्र पुरुष का पैर का चिह्न लेकर पैदा हुए होते ।  क्यों के ऐसा नहीं होता ये प्रमाणित हो जाता है ये एक विकृत सोच है और ये प्राकृतिक नहीं है । अब आते हैं ब्राह्मणों की ब्रह्मा से पैदा हुआ पार्ट को ।  पहले ब्रह्मा के बारे में जानते हैं । ये है कौन, और कहाँ रहते हैं; इस चरित्र कभी एक्जिस्ट करता था या बस एक काल्पनिक चरित्र है जैसे स्पाइडरम्यान और सुपरम्यान के जैसे; और अगर ये एक काल्पनिक चरित्र है तो वह काल्पनिक चरित्र कब बना और ब्राह्मण इस चरित्र से कैसे  पैदा हुए?  ब्राह्मणों के शास्त्रों के अनुसार ये कभी स्वयंभू है तो कभी मानस पुत्र हैं ।  स्वयंभू का मतलब खुद अपने आप पैदा एक चरित्र है जो प्राकृतिक बाइओलजिकाल प्रिंसिपल से बना नहीं है लेकिन वह इंसान का जैसा दीखता है लेकिन अजीब है क्यों की ये अक्सर बूढ़ा और चार सर और चार हाथ वाला चरित्र है जो की बाइओलॉजिकल इम्पोसिबल है जो की केवल कल्पना में ही सम्भब है और काल्पनिक चीजों को इंसान इजी में चित्र या मूर्त्ति में रूपांतर कर सकता है; दूसरा पार्ट है की कुछ शास्त्र इस चरित्र को मानस पुत्र बताते हैं यानि मन से पैदा हुआ पुत्र यानि काल्पनिक यानि उनकी शास्त्र खुद ही बोलता है ये चरित्र काल्पनिक है । अगर ब्राह्मण इस काल्पनिक चरित्र से बने तो वह भी काल्पनिक होना चाहिए लेकिन वह है नहीं इसका मतलब ये खुद को काल्पनिक चरित्र से बना बताकर दुनिया को बेवकूफ और धोका दे रहे हैं और उस में स्वार्थी चीजें जोड़कर उसका लाभ और उसका मजा ले रहे हैं, यानि दुनिया को चुतिया बना के चुना और ठग रहे हैं ।  अब आते हैं ये चरित्र अगर काल्पनिक है तो ये काल्पनिक चरित्र कौन पैदा किया और ये चरित्र किस समय अबद्धि में पैदा हुआ! उदहारण के तौर पर स्पाइडरम्यान को लेते हैं।  दुनिया में ब्रह्मा को जितना नहीं जानते होंगे उससे कहीं ज्यादा लोग स्पाइडरम्यान को जानते होंगे ।  अब अगर कोई बोलेगा स्पाइडरम्यान सच में एक्जिस्ट करता था और ये कई हजारों साल पहले पैदा हुआ था; तो क्या आप इसको स्वीकार करेंगे? सरल विस्वाशवाले लोगों को कुछ भी बोल दो वह क्यों के सरल विस्वाशी होते हैं वह सायद विस्वाश करलें; लेकिन इसको परिक्षण करने केलिए तार्किक प्रोसेस क्या है? पहले स्पाइडरम्यान की इन्फर्मेशन देनेवाले चीजों को इकठा करोगे ।  उस के स्टोरी से भी आपक उसकी टाइम लाइन का पता चल जायेगा जैसे स्पाइडरम्यान क्या यूज करता था; वह यूज करता चीज का आविष्कार कब हुआ था इत्यादि इत्यादि बस बिना सर्कमस्टान्सिअल येभीडेन्स से भी तार्किक यानि लॉजिकल इंटरप्रिटेशन से भी आप उस चरित्र का टाइम लाइन ढूंढ सकते हो और सबसे इजी  तरिका है स्पाइडरम्यान की रचनाकार कौन है और वह कब पैदा हुआ था।  अगर रचना कार का इतिहास जान लोगे तो वह कब पैदा हुआ था पता चल जाएगा; और ये समझना बहुत ही इजी है जब रचनाकार पैदा होगा उसके बाद में ही तो उसका काल्पनिक चरित्र पैदा होगा?  आप उसके बाद स्पाइडरम्यान की कल्पनाकार को ढूंढोगे और इतिहास सही लिखी हो तो आपको हर आर्टिकल में सेम इन्फॉर्मेशन मिलेगा अगर गलत होगा अलग अलग मिलेगा और ऐसे हुआ तो आप उसके स्टोरी से ही उसकी टाइम लाइन का अंदाजा लगाना पड़ेगा; ये भी बहुत इजी है ।  स्पाइडरम्यान का केस में ये तो बहुत ही इजी है यानी आप कोई सर्च इंजिन में “क्रिएटर ऑफ़ स्पाइडरम्यान” सर्च करो आप को आराम से इसकी रचनाकार का नाम मिल जायेगा। स्पाइडरम्यान लेखक-संपादक स्टेन ली और लेखक-कलाकार स्टीव डिटक द्वारा बनाया गया एक काल्पनिक सुपरहीरो है जो 1962 में लोगों के सामने आया । अगर इस चरित्र को इससे ज्यादा अगर कोई बताता है तो वह झूठ बोल रहा है और एक धूर्त्त ठग है । मान लो आप को उसका कल्पनाकार यानी रचनाकार की इतिहास नहीं मिला आप उस चरित्र रचना का टाइम लाइन कैसे पता लगाओगे? वह भी आसान है स्टोरी में स्पाइडरम्यान कौनसा कौनसा चीजें इस्तेमाल करता है और उनका अबिष्कार कब हुआ था जानकर । वही लॉजिक ब्रह्मा के ऊपर डालते हैं।  ब्रह्मा का इन्फर्मेशन आप ढूंढोगे तो आप को हजार तरह की एक्सप्लनेशन मिलेंगे क्यों की इसकी कभी सचाई का एक सोर्स ही नहीं है ।  एक ठग ने चरित्र पैदा करदिया दूसरे ने उसको बढ़ा चढ़ा के लिख दिया और असली चरित्र बनानेवाले का नाम आप को कहीं नहीं मिलेगा । इसका चित्र और मूर्त्तियां 900AD के बाद में ही मिलेंगे यानी ये चरित्र 900AD के बाद में ही जोरशोर से प्रचलन में आया । अब आप उसकी भेषभूषा और आभूषण से पता कर सकते हो इस काल्पनिक सोच का काल खंड क्या हो सकता है हालां की उसके प्रचारक प्रेजेंट टाइम के हिसाब से उस को बढ़ा चढ़ा के दिखाते हैं; जैसे ब्रह्मा का किताब  और पेन यूज करना यानि मेटल और पेपर जब पैदा हुए होंगे उस कालखंड के बाद ही उसका कोई यूज कर सकता है। इस तरह उनकी अगर पहनाव को अगर डिकोड करो आप को उस चरित्र का एज लगभग पता चल जाएगा । यानि उनकी मेटाल/धातु का लोटा, रेशम के रंगीन कपडे, सोना का सुन्दर कारीगरी किया गया अलंकार इंसान किस काल खंड में इस्तमाल करता था उसका एज अगर आप पता कर लोगे वह काल्पनिक चरित्र उसी काल खंड में ही बना है; यानि ये चरित्र हाल ही कुछ सदियों पहले बना चरित्र है और ज्यादा पुराना नहीं है जब की बुद्ध की प्रतिमा और उनकी विचारधारा इनसे कई ज्यादा पुरानी है । ब्रह्मा के हाथ में लोटा है यानि ये पानी का इस्तमाल करते थे यानि ये पानी पिने केलिए या शौच करने केलिए भी हुआ होगा ना? तो ब्राह्मण ये भी बता दो ब्रह्मा उन के चार हाथों में से कौनसा हाथ में अपना मल धोया करते थे? क्यों के इंडिया के ब्राह्मण ही इस काल्पनिक देवादेवियां और जातपात सोच का विचारधारा को ज्यादा फैलाते हैं बिना सक में हम कह सकते हैं ये धूर्त्त कोई और नहीं ये ब्राह्मण ही हैं । ब्राह्मण का असली अर्थ “बलि देने वाले लोग” है । कुछ मुर्ख वैदिक विद्वान बोलते हैं ब्राह्मण वह है जिसको ब्रह्म यानि जीवन या आत्मा का बोध हो, अगर ऐसा होता ये ब्राह्मण नहीं “ब्रह्मोध” कहलाते । ब्राह्मण ब्रह्म और हण सब्द योग से पैदा एक सब्द है; ब्रह्म का मतलब जीवन या आत्मा; और हण का मतलब हत्यारा होता है; यानि ब्राह्मण का असली अर्थ जीव हत्यारा या जीव को बलि देनेवाले लोग होता है । इसका प्रमाण खुद पुरुष सूक्त 10.90 है; क्यों के बली देनेवाली सोच वैदिक विचारधारा की है और पुरुष की बली से उनकी जात और जातिवादी समाज बनी है; वह ब्राह्मण खुद पुरुष के मुख से बने है ये उसका प्रत्यक्ष प्रुभ है। ये केवल जीव या इंसानों को बलिदेनेवाले धूर्त्त नहीं है, ये इंडिया का सबसे पुराना प्रमुख विचारधारा बौद्ध धम्म और उनके सन्यासों का वली देने वाले हत्यारे हैं। हर भाषिय सभ्यता के धूर्त्तों का गठबंधन यानि धूर्त्तों की संगठित ठगबंधन ही ब्राह्मणवाद है । आर्य एक पाली शब्द है जिसका मतलब श्रेष्ट होता है, इस शब्द का कोई रेस से कुछ भी समबन्ध या मतलब नहीं; लेकिन धूर्त्तों ने आर्य का मतलब को कहीं दूसरे भूखंड से आये महान रेस खुद को बताकर लगों में भ्रान्ति/भ्रम भरी हुयी है । जिसको उनके द्वारा बनाये गए भिक्टिम यानि बकरे/भेड़ जिनका नाम वह शुद्र रखा है वह हमेशा उनको दुशरा भूखंड का बताकर हमेशा गाली देते रहते हैं; लेकिन उनको क्या पता ये धूर्त्त बिदेशी नहीं देशी है । अगर ये बिदेशी होते ये उस भूखंड का भी इस भूखंड का जैसे सत्यानाश नहीं करदिया होता? जो करोड़ करोड़ झूठी काल्पनिक देवादेवियां बना सकते हैं, जो बौद्ध धर्म और बुद्ध को बदनाम करने केलिए उनका जैसे एक नंगा काल्पनिक चरित्र महावीर और जैन धर्म पैदा कर सकते हैं उन जैसे धूर्त्तों कलिये एक झूठा रेस यानि आर्य रेस खड़ा करना कौनसा मुश्किल बात है? जो की असलियत में हमारा देश का देशी ठगों और धूर्त्तों का रेस है । गोबर की प्याकेट को आप अमृत बोलकर मार्केटिंग करना और उसकी पॉपुलरिटी को 100% लोगों में भरदेना जो बात है वही बात इन ठगों और धूर्त्तों ने खुद को इलाइट ग्रुप यानि आर्य रेस बताकर लोगों को अच्छी तरह से चुना लगाया है, और लगाते आ रहे हैं; और अंधभक्त उनकी चुना लगाने को धर्म, संस्कार और संस्कृति कहते हैं । वंशवाद वृत्तिवादी मनसा रखनेवाले मूलनिवासी जो चाहते थे अच्छे अच्छे वृत्तियाँ वह और उनके पीढ़ियाँ हि करें और समाज का शासक बर्ग वह और उनके पीढ़ियाँ ही कोई प्रतियोगिता के बिना सदियों बने रहे वही मानसिकतावाले स्वार्थी, झूठे, मक्कार, ठग, चाटुकार, पाखंडी, चोर, धूर्त्त, कपटी, उपद्रवी, बाहुबली, बेईमान, अपराधी श्रेणी के मूलनिवासी के पूर्वजों ने ही बहुदेववाद मूर्त्तिपूजा और वर्णवाद का विचारधारा बना के यहाँ का असली प्रमुख विचारधारा बौद्ध धर्म को ध्वंस किया और अपने ही भोले भाले मूलनिवासियों के ऊपर अपने स्वार्थी उपद्रवी वैदिक विचारधारा थोपके उनको अपना गुलाम बनाया । जातिवाद विचारधारा को बिभिन्न भाषिय सभ्यता का स्वार्थी, झूठे, मक्कार, ठग, चाटुकार, पाखंडी, चोर, धूर्त्त, कपटी, उपद्रवी, बाहुबली, बेईमान, अपराधी श्रेणी के मूलनिवासी ही अपना चरित्र के हिसाब से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य में बंटे हुए है और अपना अपना एक उप संप्रदाय विचारधारा का वर्ग बनाया हुआ है । वैदिक जातिवादी विचारधारा सम्पूर्ण रूप से बृत्ति सरंक्षण, तुष्टिकरण और छल बल से मासूम लोगों को गुलाम बनाकर सदियों डाइनेस्टी संप्रदाय राज करने की सोच का एक विचारधारा है यानि एक साम्प्रदायिक पोलिटिकल सोच है जो बौद्ध धर्म के पतन के वाद यह लोग धर्म के नाम में फैला के अबतक ये स्वार्थी, झूठे, मक्कार, धूर्त्त, ठग, चाटुकार, पाखंडी, चोर, कपटी, उपद्रवी, बाहुबली, बेईमान, अपराधी श्रेणी के मूलनिवासी ही आजतक राज करते आ रहे हैं । वैदिक धर्म में सबर्ण यहाँ पर कोई विदेशी नहीं सब स्वार्थी, झूठे, मक्कार, धूर्त्त, ठग, शातिर, चाटुकार, चोर, कपटी, उपद्रवी, बाहुबली, बेईमान, अपराधी श्रेणी के मूलनिवासी पूर्वजों के वंशज है । हो सकता है इन के अबकी पीढ़ियों को ये पता नहीं लेकिन सचाई यही है । उनको इसलिए पता नहीं के विचारधारा उनके पूर्वजोंने बनाई और अपनाई थी वह नहीं । अगर इस विचारधारा को क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र बनाते तो वह अपने आप को श्रेष्ट में रखते; इसलिए ब्राह्मण कहेजाने वाले लोग ही सबसे बड़ा धूर्त्त हैं और क्यों के उनकी विचारधारा जातीय व्यबस्था पर आधारित है इशलिये उनका धर्म को जातधर्म कहना चाहिए हिन्दू धर्म नहीं । पाली शब्द शिन्दु से बना हिन्दू सामाजिक पहचानवाला मूलनिवासी का पेशे करनेवाला बच्चे की जात यानि जन्म के साथ पेशे से कोई सम्बन्ध नहीं; सीबाये पाली शब्द जात यानि जिसका अर्थ जन्म है यानि इंसान का बच्चा; और बौद्ध धर्म से यानि ये धर्म अवर्ण यानि बिना जातीय व्यबस्था का धर्म है; यहाँ पेशा का स्वतंत्रता है, और कोई भी इंसान अपने बुद्धि यानि शिक्ष्या, काबिलियत यानि योग्यता के द्वारा कोई भी पेशा कर सकता है । कोईभी पेशा करनेवाला इंसान के घर में पैदा इंसानी बच्चा अपना पिता का अपनाया हुआ पेशा ही वंशवादी पेशा के तौर पर करेगा इस जैसे घटिया विचारधारा की कोई स्थान नहीं । ब्राह्मणों ने अपना पेशा को बंशवादी इसलिए बनाया क्यों के वह और उनके पीढ़ियां बिना योग्यता के लोगों को पत्थर का काल्पनिक मूर्त्ति दिखाके जो पैसा कमाना था? जिसकेलिए वह योगता को अपने जन्म से जोड़ा जिस केलिए उनके बच्चों को प्रतियोगिता का सामना करना नहीं पड़े, और सिक्ष्या को अपने हाथ में रखा ताकि उनको छोड़ कर कोई दुसरा क्लास उनसे ज्यादा पढ़ालिखा नहीं बनजाये; पेशा की स्वतंत्रता को इसलिए रोका ताकि कोई और उनके प्रोफेसन में घुस नहीं पाए; कभी अपने देखा है कोई ब्राह्मण की बच्चा कोई परीक्षा के कसौटी पर अपना प्रोफेसन करते हुए? 99.99% अंधभक्त तो उनकी संस्कृत समझ नहीं सकते में तो 100% निश्चित हूँ ब्राह्मणवाद एक सोच की वीचारधारा है और तरह तरह के भाषिय सभ्यता के जातिवाद पुजारी बर्ग के धूर्तों की ठगबंधन समूह स्वार्थ केलिए ही इस वीचारधारा का प्रमोसन करते हैं और उन में ज्यादातर पुजारी संस्कृत समझे बिना इसका रटा लगाते हैं सायद 99% लोगों को पांच मिनिट संस्कृत में अपना भाव ब्यक्त करना भी नहीं आएगा और उस में सायद 99.99% ब्राह्मणों को अपनी देवादेवियों का भाषा संस्कृत समझ में ही नहीं आएगा । अगर उनके हिसाब से पुजारी का बच्चा अगर पुजारी बनेगा; डॉक्टर, इंजीनियर क्यों बनते हैं? उन मूर्खों की विचारधारा के अनुसार एक डॉक्टर का बच्चा डॉक्टर ही बनना चाहिए और एक इंजीनियर का बच्चा इंजीनियर अगर वह पढ़ के इंजीनयर या डॉक्टर नहीं बन पाया क्या उसके बच्चे का नाम के पीछे का सरनेम डॉक्टर या इंजीनियर लगाओगे? क्या मूर्खता है! ब्राह्मण बस वही करते आ रहे हैं सरनेम में झूठी सामाजिक सर्बश्रेष्ट होने का रिज़र्वेशन रखी हुयी है और उसका वंशवादी फायदा आजतक उठाके दूसरों को उल्लू बनाते आ रहे हैं जब की सबसे ज्यादा ठग, धूर्त्त अयोग्य और निक्क्मे यही हैं । क्यों के धूर्त्तता से उनकी वर्चस्व सबके ऊपर है इसलिए हर चीज पर अपनी पहला अधिकार पकड़ी हुयी है । इसलिए उनके मकड जाल से अगर निकलना है तो उन की जात धर्म को छोडो और खुद को हिन्दू कहो लेकिन अवर्ण हिन्दू, पाखंडी हिन्दू नहीं । जब आप हिन्दू को बौद्ध धर्म बोलकर मानोगे और उनकी पाखंडी हिन्दू को जात की धर्म; वह इंडिया को हिन्दू राष्ट्र बनाना तो दूर खुद को हिन्दू बोलना भी छोड़ देंगे । जिनके दिमाग में गोबर भरा हो यानी गौब्रान्डु वाले जिनको हिन्दू का मतलब पता नहीं वह बनादिये हिन्दू महासभा, RSS जैसे संगठन यानि ये स्वयं घोषित हिन्दुओं का रक्षक बनकर जातधर्म को हिन्दू के नाम में प्रमोट करते आ रहे हैं और असलियत में ये हिन्दू राष्ट्र यानि बौद्ध राष्ट्र नहीं जात राष्ट्र चाहते हैं जिस में लोग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अतिशूद्रों में बंटे हुए हो । इनका असली मकसद जातिवाद राष्ट्र है हिन्दू राष्ट्र नहीं ये हिन्दू के नाम पर वर्णवाद बनाम जातिवाद का सामाजिक सरंक्षण करना चाहते हैं। अगर हिन्दू का असली अर्थ इनको बताओगे और हिन्दू को बौद्ध विचारधारा से जोड़ोगे में 100% कन्फिडेंट हूँ ये खुद को हिन्दू कहना भी छोड़ देंगे; क्यों के इन को जातिवाद का लाभ उससे नहीं मिलेगा, इसलिए ये कोई और चालाकी का गेम खेलके आप को उल्लू बनाएंगे । ये याद रखियेगा ये खुदको जितना भी शातिर बनाते चलेंगे वह अपनी और अपनी पीढ़ियों को उतना ही मानसिक विकृत बनाते जायेंगे । कहनेका मतलब ये है के ये धूर्त्त जितने भी शातिर बनें ज्यादा नुक्सान खुदका और अपने पीढ़ियों के साथ साथ भूखंड में रहनेवाले गैरजातिवादी और गैरब्राह्मणों का ज्यादा करते हैं । वह ऐसे; समय के साथ साथ इनकी पीढ़ियां उनके धूर्त्त पूर्वजों का झूठ, भ्रम, अज्ञानता, अन्धविश्वाश, तर्कहीनता, इंसानी भेदभाव और हिंशा जैसे प्रमुख विचार से बनाया हुआ अपनी काल्पनिक देवादेवियों का विचारधारा जातिवादी धर्म को जितना बढ़ाचढ़ा के फैलाएंगे वह और उनके पीढ़िया उनके ही विकृत सोच का दुनिया का ज्यादा शिकार होते चले जायेंगे और समय के साथ ये और भी ज्यादा मानसिक विकृत बनते जायेंगे यानि ASPD यानि Antisocial Personality Disorder अर्थात असामाजिक व्यक्तित्व विकार का शिकार बनेंगे यानि ये उतना ही झूठ, भ्रम, अज्ञानता, अन्धविश्वाश, तर्कहीनता, इंसानी भेदभाव और हिंशा जैसे प्रमुख विचार का शिकार बनेंगे जिससे समाज और भी विकृत होता चला जायेगा जिससे उनके विचारधारा को नहीं माननेवाले लोग भी प्रभावित होंगे । ये हमेशा याद रखना हर भाषिय सभ्यता के धूर्त्तों का गठबंधन यानि धूर्त्तों की संगठित ठगबंधन ही ब्राह्मणवाद है । ब्राह्मणवाद बनाम जातिप्रथा एक वैचारिक श्रेणी हैं कोई DNA रेसिअल श्रेणी नहीं । कश्मीर ब्राह्मण का साथ केरला या तेलुगु ब्राह्मण का कोई DNA रेस का कनेक्शन नहीं; वैसे ही कश्मीर क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का साथ केरला, तेलुगु अन्य कोई भी भाषिय सभ्यता के क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का कोई DNA रेस का कनेक्शन नहीं । बस ये एक गन्दी सोच का डेल्युजनाल वैचारिक श्रेणी है; जो अपने क्लास की भाषा को भी समझ नहीं सकते; यानि कहने का मतलब पंजाबी भाषी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र केरला की ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र अपने अपने क्लास का भाषा को भी समझ नहीं पायेगा तो इनका क्लास सोर्स एक कैसा होगा? हर जातिवाद का क्लास एक एक वैचारिक सोच का पिंजरा है और हर वैचारिक सोच के पिंजरें में रहने वाले इंसान को दूसरा वैचारिक पिंजरें में प्रबेश मना है। हमारे देश में कई भाषिय सभ्यता है करीब 1700 से ज्यादा भाषा इंडिया में बोले जाते हैं जिस में करीब 122 प्रमुख भाषाएँ हैं और उनके ही धूर्त्त, ठग और चालाक/शातिर मूलनिवासियों का गठ बंधन ही ब्राह्मण समाज है जिसको साथ दिया हर भाषिय सभ्यता के उपद्रवी और बाहुवली श्रेणी मूलनिवासियों का गठबंधन जिसको हम क्षत्रिय कहते है और जो बेईमान, चालाक/शातिर और ठग श्रेणी बहु भाषिय ब्योपारी मूलनिवासियों का गठबंधन था उन्होंने अपने आप को वैश्य बताया और ऐसे ही असामाजिक श्रेणी के पूर्वज जो ज्यादातर झूठे, मक्कार, बेईमान, उपद्रवी या बाहुवली श्रेणी के लोग थे उन्होंने वैदिक विचार का जातिप्रथा अपनाके बौद्ध धर्म को नष्ट किया और वैदिक समाज के शासक वर्ग बनगए । उन्होंने हर चीज, संशाधन और ऑपर्च्युनिटी पर उनका वर्चस्व कायम किया और आजतक यहाँ के बौद्ध सभ्यता को गुलाम बनाके रखा है । अपना घर की सत्रु यानि देशी दुश्मन ही बाहरी आक्रांताओं से कई ज्यादा खतरनाक है जो धर्म के चादर में अपने आपको ढका रखा है । इन हरामखोरों ने इस धरती का असली मूल विचारधारा बौद्ध विचारधारा को नष्ट भ्रष्ट करके लोगों को झूठ, अंधविस्वाश और अज्ञानता का मानसिक बीमार और उनकी गुलाम बनादिया । अपनी काल्पनिक भ्रम वाला झूठी धर्म को बौद्ध धर्म से ज्यादा पुरानी बताकर यहाँ के लोगों को सदियों मानसिक विकृत बनाया और आजतक धर्म को धंदा बनाकर इसको एक पोलिटिकल टूल के तरह यूज करके “फुट डालो राज करो” गेम खेलते आ रहे हैं । लोग जितने सेक्ट और सब सेक्ट में बंटेंगे उतना ही उनका गठबंधन यानि एकता कमजोर होगा जिसका फ़ायदा उठाया जा सकता है । यही कारण है की हमारा देश बौद्ध विचारधारा के राजाओं के अधीन से राज जाने के बाद असामाजिक मूलनिवासियों के द्वारा बनाया गया स्वार्थी वर्णवाद का शिकार हुआ और ये विचारधारा अपने ही बुद्धिजीविओं को ख़तम करता गया और असामाजिक मूलनिवासी सभ्यता के शासक वर्ग बन बैठे । इसलिए कुछ लोग बोलते है देश की अबके शासकों में 100 में 99 बेईमान फिर भी मेरा देश महान; क्यों के इनके विचारधारा फुट डालो राज करो था इसलिए एक बड़ा वर्ग कभी भी संगठित हो नहीं पाया और ये भूखंड बाहरी आक्रांताओं का शिकार हुआ । घरके दुश्मन ही बाहरी आक्रांताओं से बड़ा खतरनाक निकले । ब्राह्मणवाद यानि वर्णवाद ही हमारा देश का असली दुश्मन है । जितना जल्दी हो इस दुश्मन का खात्मा करना जरुरी है और ये चीज सत्य को उजागर यानि थिओफिलिआ और थिओप्लेसिबो क्या है उसको लोगों को समझाकर; और वर्णवादियों को अवर्ण बनाकर किया जा सकता है । ये याद जरूर रखें ब्राह्मण एक विचारधारा है यानि एक सोच इसका कोई भी DNA वाला रेस नहीं है। क्यों के वैदिक पुरुष शुक्त १०.९० का वर्णवाद एक इंसान को एक विशिष्ट इंसान का प्रमाणपत्र देता है ये प्रमाण पत्र वही हथिया लेता है जो बड़ा धूर्त्त हो ।  इसलिए ज्यादातर धूर्त्त और बेईमान किसम के मूलनिवासी ही ब्राह्मण बने हुए हैं । ब्राह्मण होनेका कोई बायोलोजिकल जन्मगत प्रमाण नहीं होता है लेकिन सामाजिक जन्मगत प्रमाण होता है यानि जो पहले से ब्राह्मण का सर्टिफिकेट हथिया लिया है वह उस समाज में अपने आपको ब्राह्मण बोलकर प्रतिष्ठित करता है; ऐसे कोई भी रेजिस्टर मेंटेन नहीं होता है असलियत में कौन बायोलॉजिकली ब्राह्मण है; और बायोलॉजिकली सब इंसान होते है कोई ब्राह्मण नहीं ।  कोई भी भाषिय धूर्त्त दूसरे क्षेत्र और भाषा का आडॉप्शन करके और ब्राह्मणवाला सरनेम अपनाके खुद को ब्राह्मण घोसित करके उस विचारधारा को आगे बढ़ा सकता है और वैसे ही होता आ रहा है । पहले तो बेईमान बौद्ध सन्यासों के कुछ पीढ़ियां जो शादिशुदा दाम्पत्य जीवन अपनाके ब्राह्मण बने हुए हैं और उनके वजह से ही इंडिया में आग का जैसे बौद्ध धर्म गायब हो गया है; उसके इलावा ब्राह्मणो में किसी भी तरह के विचारधारा या भाषिय सभ्यता के लोग हो किसी भी जाती या धर्म से हो जो इसका राज जानते हैं वह भी नकली धूर्त्त ब्राह्मण बने हुए हैं और उनका ही प्रभाव ज्यादा हैं । इंडिया का करीब ६ करोड़ ब्राह्मणों में 80% से भी ज्यादा गरीब हैं जो कभी पुजारी का काम करते है तो किसीका घर में रसोई करते हैं या कोई दूसरे काम करते हैं लेकिन जो देश को रूल करते हैं वह ब्राह्मण असली है या नकली हैं या मौकापरस्त ठगों का बंसज है जिन्होंने कभी इस कुलीनवर्ग होने का फ़ायदा उठाया होगा वह जांच का बिषय है; इसलिए ब्राह्मण वर्ग कुलीन वर्ग के नामपर सबसे बड़ा धूर्त्त गठबंधन हैं ।  आप को एक सिंपल टिप्स है उनके सरनेम से कैसे पता लगाएं कौन असली है कौन नकली है और कौन बौद्ध धर्म से रूपांतरित ब्राह्मण हैं । वेद के अनुसार चार वर्ण है; वह है ब्राह्मण यानि  पुजारी वर्ग जो खुद को ब्राह्मण बोलकर संस्कृत में निर्जीब मूर्त्तियों को सम्बाद करते हैं यानि असलियत मैं बौद्ध विरोधी धूर्त ठग मूलनिवासी हैं । और मिनातन धर्म यानि वैदिक धर्म या वैदिक  विचारधारा  का सृष्टिकर्त्ता हैं । वेद भी पाली शब्द वेदना से पैदा एक सब्द है जिसका मतलब भावना, संवेदना, अनुभूति, पीड़ा इत्यादि होता है । यानि वेद शब्द भी उनकी नहीं बौद्ध भाषा पाली से पैदा हुआ एक सब्द  है । जैसे की मैने बताया ब्राह्मण ब्रह्म+हण शब्द योग से पैदा एक शब्द है ब्रह्म का मतलब जीवन या आत्मा यानि जीव से सम्बंधित है और हण का मतलब हत्यारा होता है; यानि ब्राह्मण का मतलब असलियत में जीव हत्यारा यानि बलि देनेवाले लोग होते हैं जो उनके कपोल कल्पित देवादेवियों के सामने इनोसेंट अनिमाल का बलि देते हैं; और उनके विचारधारा में भी इंसानो की बलि देने का सोच है, क्यों के पुरुष के बली से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र पैदा हुए हैं ये उसका प्रमाण है; और बलि वेदना यानि पीड़ा से सम्बंधित है । वैदिक विचारधारा बनानेवाले धूर्त मुलनिवाशी बौद्ध विरोधी थे क्यों के बौद्ध विचारधारा जीब बलि का बिरोधी, गॉड/सृपासं विरोधी और मानव समानता और इंसानियत का विचारधारा/सोच था और वैदिक विचारधारा उसका उलट जीब को बलि देनेवाला, काल्पनिक गॉड/सृपासं को माननेवाला, लोगों में भेदभाव यानि असमानता पैदा करके वर्चस्व कायम करना जैसे असामाजिक सोच/विचारधारा था; यानि ब्राह्मण मतलब बुद्धि का हत्यारा यानि बुद्धि का दुश्मन इसलिए असली ब्राह्मण बुद्धि/वौद्ध विरोधी मुलनिवाशी ही थे जिन्होंने अपने आपको सबसे ऊँचा रखा और आपने स्वार्थ हित को सर्बोच्च रखकर ही विचारधारा की रचना की; जो सरनेम वेद से जुड़े हुए मिलेंगे वह ही असली गद्दार बेईमान धूर्त्त मक्कार बौद्ध विरोधी मूलनिवासी ब्राह्मण हैं और उनका  पीढ़ियों के नाम ही वेद से ज्यादा जुड़ा हुआ मिलेंगे जैसे त्रिवेदी और चतुर्वेदी इत्यादि; और ये भी ध्यान रखें सरनेम अडॉप्ट भी किया जा सकता है, और जिन्होंने अडॉप्ट की होंगी या विवाह के कारण सरनेम अडॉप्ट की होगी आपको उस ही हिसाब से उनकी लाइनेज को भी सोचना होगा । पूर्वज धूर्त्त थे इसका मतलब ये कतई नहीं उनका हर पीढ़ी के बच्चे सब धूर्त्त ही निकलेंगे । में बार बार कह दूँ ब्राह्मणवाद एक काल्पनिक विचारधारा की वर्ग है;  इसमें कौन असली विचारधारा की असली वाहक ब्राह्मण हैं, कौन जबरन ब्राह्मण बनने को मजबूर हुए या  बनादिये गए और कौन धूर्त्त मूलनिवासी, ब्राह्मणों को मिलती सामाजिक लाभ से प्रलोभित होकर मौका देख कर चौका लगाया और खुद को ब्राह्मण बनालिये इसका पहचान उन की सरनेम डिकोड करके करनी है ।   क्यों के इंडिया बौद्ध धर्म का जन्मदाता और भूखंड रहा यहाँ करोड़ों में बौद्ध सन्यास और उनका प्रमुख प्रमोटर्स रहे होंगे और जब ब्राह्मणवाद विचारधारा फैला इन में से कई खुद को कनभर्ट किया होगा और जो नहीं हुए होंगे उनकी हत्या या उत्पीड़न किया गया होगा; इसलिए उन में से कुछ जबरन अपने आपको ब्राह्मणवाद का हिस्सा बनाया होगा।  ब्राह्मणवादी सोच बौद्ध धर्म में घुसे होंगे और बौद्ध धर्म को फ्याबरिकेट और नष्ट किया होगा और बेईमान बौद्ध प्रमोटर्स जो की ज्यादातर बौद्ध सन्यास ही थे वह उनका साथ दिया होगा जिसलिये वैदिक धर्म आग के जैसे इंडिया में फ़ैलगया होगा और बौद्ध धर्म नष्ट, भ्रष्ट और खतम हो गया होगा । इसमें नकली ब्रह्मण जो की मौका फरोश धूर्त ठग हैं जिन्होंने केवल ब्राह्मणों की पानेवाले सामाजिक लाभ केलिए अपनाया वह ही ज्यादा अब वैदिक धर्म को कंट्रोल करते आरहे हैं ।  वर्णवाद का दुशरा वर्ग क्षत्रिय यानि जिसको क्षेत्र से आय मिलता हो यानि पूरा क्षेत्र का एक मालिक हो और उसके क्षेत्र में रहनेवाले उसको रहने की तरह तरह की ट्याक्स देते हो यानि केवल राजा ।  तीसरा है वैश्य यानि बैठ बैठ के सप्लाई चेन से ब्योपार करके पैसा कमानेवाला ब्यापारी; ध्यान रहे ये कोई भी सेवा या प्रॉडक्ट नहीं बनाते बस सेवा और प्रॉडक्ट को बेच के पैसा कमाते हैं यानि बिचौलिये; इन तीन प्रमुख प्रफेसन को छोड़कर और जितने भी प्रोफेसन है वह सब शूद्र हैं यानि सेवक यानि गुलाम वर्ग । कुछ अगड़ी शूद्र खुद को शूद्र कहने से शर्म आति है; तो इन में से कुछ अपने आप को क्षत्रिय में अप्लिफ्टेड कर दिये हैं पतानहीं इनका कौनसा राज दरवार है; कुछ लोगों के घर में चूल्हे जलते नहीं होंगे लेकिन खुद को क्षत्रिय कहने में उनको गर्व महसूस होता है; पता नहीं उनकी कौनसा राज्य है जो खुद को राजा का प्रतिक मानते हैं ।  कुछ तो एक पांचवी वर्ण बनाडाला है कायस्थ का; यानि ब्रह्मा के काया से बना वर्ण, यानि ब्रह्मा के नाभि से और एक वर्ण जो खुदको कायस्थ बोलकर बढ़ाचढ़ाके अपना वर्ण का प्रमोसन करते रहते हैं । जाट और राजपूतना ये दो भी ट्राइब अतिशूद्र यानी अछूत हुआ करते थे और ये वर्णवाद के चाहत में खुद को क्षत्रिय अपलिफ्टेड कर चुके हैं । राजपूतना यानि राजाओं की पूत/पुत्र; अरे भाई क्या सारा ट्राइब क्या राजाओं का था तो प्रजा कौन था? यानि ये ट्राइबवाले जातिवाद का लम्बा पारी मारी और पूरा ट्राइब को ही क्षत्रिय डिक्लर करदिया यानि आत्मघोषित क्षत्रिय ट्राइब; यानि इनको कितना जातिवादी का प्यास है इससे पता चलता है। जाट भी पाली शब्द जात से बना एक शब्द है और ये भी अपने आप को आत्मघोषित क्षत्रिय ट्राइब बताते हैं और खुदको जमीनदार और क्षत्रिय से जोड़ते हैं । यानि ब्राह्मणों ने काल्पनिक जाती का नशा ऐसे पैदा किया की हर कोई ऊंचा होने का नशा रखना सुरु कर दिया ये बिना सोचे के जाती की आड़ में वह अपना विचारधारा के पिंजरे में वह उनको अपने इस्तमाल करने केलिए बकरा बनाकर अपने विचारधारा के पिंजरें में कैद कर रहे हैं; और देखने वाली बात ये है की बकरे को पिंजरें में होने का बड़ा गर्व है; ऐसे ही अनेक ट्राइब अपलिफ्टमेंट और सप्रेस्ड की काहानी है, आप ढूंढ़ते रहो बहुतसारे मिलजाएँगे ।  अब आप 1947 के बाद में जो जातिगत रिजर्वेसन मिल रहा है उसको छोड़ दें ये अबकी क्लासिफिकेशन हैं ।  अब आप को हर किसी की सरनेम डिकोड करना है की वह सरनेम का सोर्स और उसका अर्थ क्या है और वैदिक वर्णव्यबस्था के कौनसा प्रोफेसन का साथ मेल खाता है; अगर ये मिसमैच होंगे तो उस में भी घालमेल है । उदाहरण के स्वरुप “दाश” सरनेम को लेते है ।  इसका लिपिगत अर्थ लोग दूसरा बनादिये हैं लेकिन शाब्दिक अर्थ “गुलाम/नौकर/चाकर/भृत्य” होता है लेकिन अबकी वर्णवादी सामाजिक व्यबस्था में ये ब्राह्मण कहलाते हैं; तो ये असली या नकली आप खुद सोचो ।  दुशरा उदहारण “मिश्र” को लेते है जिसका मतलब “मिलावट” ये चार वर्ण में किस्से सम्बंधित है आप खुद सोच सकते हैं और ये किस तरह की ब्राह्मण है आप खुद सोच लो ।  और एक उदाहरण “नेहरू” को लेते है जो की नहर सब्द से पैदा एक सरनेम है जिसका मतलब “नाली/नाला” होता है; वेद तो कहता है ब्राह्मण पुरुष का मुख से बने हैं, ये नाली से कैसे बने आप खुद सोचो।  ये कौनसा टाइप का ब्राह्मण है आप खुद पता कर सकते हो।  पण्डित एक पाली सब्द है जिसका मतलब ज्ञानी होता है जिससे पांडे, पंडा, पांडियन और पंडित जैसे सरनेम पैदा हुए हैं लेकिन ये सरनेम चार वर्ण में किस्से मेल खाता है आप मेल कर सकते हो और अंदाजा लगा सकते हो ये किस तरह का ब्राह्मण हैं । ऐसे आप उनकी सरनेम की डिकोड करते चलो और मजा लेते चलो कौन किस तरह का धूर्त्त है । आप को कई सरनेम ऐसे मिलेंगे ये ब्राह्मण वर्ग का ही नहीं है लेकिन ये ब्राह्मण बने हुए हैं यानि छुपेरुस्तम रस्ते का मौका का चौका मारा और बन बैठे ब्राह्मण और मार ली ब्राह्मण होनेका सामाजिक फायदा यानि धूर्त्तों का भी बाप हैं ये । और एक सरनेम लेते हैं “झा” जो खुदको ब्राह्मण कहते हैं ।  “झा” सरनेम “झार” से पैदा हुआ है, झार का मतलब “Bush” यानि जंगल या झाडी ।  झार का भूखंड को झारखंड भी कहते है।  अब बताओ वेद तो कहता है ब्राह्मण पुरुष का मुख से पैदा होता है ये झार से कैसे पैदा हुए आप खुद सोचो! यानि ये है मौका परस्त नकली ब्राह्मणों की वंसज । इंडिया के बहुत सारे सरनेम पाली भाषा से जड़ित हैं । उदाहरण के स्वरुप “मोदी” को  ही लेलो ।  मोदी एक पाली सब्द है जिसका अर्थ “खुस होना” है । खुश होना तो कोई वैदिक वर्ण व्यबस्था के अंदर ही नहीं आता यानि ये सरनेम अवर्ण है यानि ये कभी वर्णवादी ही नहीं थे । लेकिन हमारा देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्राह्मणों की RSS की संगठन का चमचियत और गुलामी करके जातिवाद सोच का गुलाम बनकर जातिवाद को फैलाता आ रहा है इसलिए ब्रह्मणों ने इस शूद्र(OBC) को अपना बाप भी बनालिया है क्यों के ये उनकी जातिवाद को और भी मजबूत करने में मदद कर रहा है । ऐसे ही आप सरनेम को डिकोड करते चलिए और मिलाते चलिए ये कौनसा वर्ण के साथ म्याच करते हैं आप को यहाँ भी घालमेल और कई तरह की हेराफेरी मिलेंगे । आप इंडिया का सबसे बड़ा पॉपुलर न्यूज चॅनेल का अंकोर अंजना ॐ काश्यप को जानते होंगे; नहीं जानते तो गूगल करलीजिये । उनका पिताजी सायद तिवारी सरनेम का है।  तिवारी का कोई भी सीक्वेल जैसे वारी, दुवारी, चौवारी जैसे सरनेम देखने नहीं मिलते यानि ये बौद्ध धर्म त्रिपिटक से जुड़ा हुआ नाम हो सकता है; त्रिपिटक से तिवारी और त्रिपाठी सरनेम पैदा हुए हैं; त्रिपाठी सरनेम का कोई सीक्वेल जैसे पाठी, द्वीपाठी या चौपाठी देखने को नहीं मिलता इसलिए ये भी बौद्ध धर्म का त्रिपिटक से जुड़ा सरनेम हो सकता है। उसकी अंजना नाम भी बौद्ध जातक कथा का एक चरित्र का नाम है ।  ॐ एक पाली बौद्ध लिपि (ओड़िआ/ पाली ॐ= ଓ + ଁ + ଃ) है जिसको बौद्ध सन्यास अपने ध्यान केलिए इस्तेमाल करते थे और वर्णवादी धूर्त्त उसको अपना बोलकर दावा ठोकते हैं; और उसका लास्ट नेम कश्यप है जो की एक बौद्ध सन्यास का नाम है जिसको वर्णवादी धूर्त अपना एक ऋषि मानते हैं ।  यानि अंजना ॐ कश्यप सम्पूर्ण रूपसे बौद्ध विचारधारा का नाम है लेकिन ये खुदको ब्राह्मण बोलकर अपना सामाजिक पहचान बनायीं हुयी हैं यानि इनके पूर्वज कनभर्टि थे और बौद्ध धर्म के साथ बेईमानी की और उनकी बेईमानी एजेंडा में ये अब अंधभक्ति से साथ देती आ रही है ।  ये जिस प्रदेश से आती है उसका नाम बिहार है और बिहार नाम इस प्रदेश का इसलिए है क्यों के ये प्रदेश बौद्ध बिहारों का भूखंड था; अब सोचो जो प्रदेश को बौद्ध बिहारों का भूखंड कहा जाता था वहां जातिवादी प्रजा कहाँ से आये? क्या ये इसारा नहीं करता यहाँ के लोग बौद्धवादी से जातिवादी को कनभर्ट हुए हैं? बौद्ध विहार का भूखंड में बसनेवाले लोगों को ही बिहारी कहते है । जो बौद्ध विहार में रहता होगा वह बौद्धवादी होना चाहिए और क्यों के बौद्ध धर्म में वर्णवाद/जातिवाद नहीं है तो बौद्ध बिहार के भूखंड में कोई जातिवादी नहीं होना चाहिए लेकिन अब की बिहार का भूखंड का हालत ऐसे नहीं है क्यों के अब की वहां के जेनेरेशन सब जातिवादी बनचुके हैं । इस बात से पता लगा सकते हो ब्राह्मण झूठ फैलाने में कितना माहिर शातिर धूर्त हैं । बुद्ध ओडिशा का भूमिपुत्र हैं और में दावे से कह सकता हूँ 99.99% ओड़िआ लोग नहीं जानते होंगे की बुद्ध ओड़िआ है और उनकी भाषा को कभी पाली कहा जाता था; इस बात से पता कर सकते हो ब्राह्मण कितना ब्रेनवाश करने में माहिर शातिर धूर्त खिलाड़ी हैं । और एक विकृत अंधभक्त श्वेता सिंह को उस ही न्यूज चॅनेल में अपने देखि होगी जिसका सरनेम सिंह है और बौद्ध धर्म में “सिंह” का महत्व हमेशा रहा है यानि ये बौद्ध धर्म को रक्षा करनेवाली क्लान से बिलोंग्स करती हैं।  किसी भी बौद्ध मंदिर का सामने आप को सिंह का मूर्त्ति मिलेंगे; ॐ, 卍, 卐, ☸, कमल , सिंह और हाथी बौद्ध विचारधारा का प्रमुख प्रतिक हैं ।  इंडिया जब बौद्ध विचारधारा से प्रभावित था बौद्ध विचारधारा को सुरक्षा देनेवाले पूर्वजों की सरनेम सिंह होता था। असोक का चक्र में भी आप को बौद्ध धर्म के प्रतिक के रूप में आप को सिंह का प्रतिक मिल जायेंगे; क्यों के इसके पूर्वज बौद्ध धर्म से जुड़े हुए थे वह अवर्ण ही थे लेकिन अब सिंह सरनेमवाले कोई कोई खुद को ब्राह्मण बताते हैं, कोई क्षत्रिय तो कोई शूद्र यानि कोई शेड्यूल्ड कास्ट या शेड्यूल्ड ट्राइब बताते हैं, लेकिन “सिंह” सरनेम वैदिक वर्णवाद का कोई भी वर्ण में मेल नहीं खाता इसलिए ये स्वयं अप्लिफ्टेड हैं; जो अप्लिफ्टेड हो नहीं पाए वह शेड्यूल्ड हैं ।  ऐसे ही सरनेम डिकोड करते चलिए आपको कई तरह की हैरानी होगी और कौन असली और कौन नकली और घालमेल का थोड़ाबहुत आकलन करपाएंगे । इंडिया को एक सोने की चिड़िया कहा जानेवाला देश कहा जाता था जब यहां का विचारधारा बौद्ध विचारधारा था; जातिवादी विचारधारा नहीं । बौद्ध धम्म/धर्म ही इंडिया का सबसे पुराना प्रमुख विचारधारा है क्यों के इंडिया और इंडिया के आस पास किसी भी भूखंड में भी आप को बौद्ध सम्पदा से ज्यादा पुराना चीजे यानि सर्कमस्टान्सिअल एभीडेन्स आपको कहीं नहीं मिलेंगे ।  बौद्ध धर्म समानता और इंसानियत का धर्म है ।  बौद्ध धर्म क्या है? बौद्ध शब्द बुद्धि शब्द से पैदा एक शब्द है यानि बौद्ध धम्म इंसान का सत् बुद्धि को मानेवाला धर्म है जिस में सत्य, तर्क, खोज, परिक्षण, अवलोकन, प्रयोग और व्याख्या मुख्य विचार हैं ।  धर्म शब्द पाली शब्द धम्म से पैदा एक शब्द है धर्म/धम्म का मतलब जिस विचारधारा को हम सामाजिक और नैतिक ब्यक्तित्व केलिए मन में धारण करते है यानि “धारोती ती धम्मो” एक ब्यक्ति का विचार, स्वभाव और लक्षण ही उसका धर्म है ।  विचारधारा यानि आईडोलोजी क्या है? आईडोलोजी इज ए सेट ऑफ़ आइडिआज होता है यानि विचारधारा विचार का एक समूह होता है जो की अच्छी समाज को बनाने का उद्देश्य से बनाया जाता है; साहित्य को अस्त्र के रूपसे इस्तेमाल करने को शास्त्र कहा जाता है और साहित्य क्या है समाज के हित केलिए जो रचना किया जाये वह है साहित्य । जातिवादीयों का शास्त्र और साहित्य लोगों को वैचारिक गुलाम, उत्पीड़न, शोषण और ठग ने केलिए है समाज के कल्याण केलिए नहीं जिस में वह समाज में झूठ, भ्रम, अज्ञानता, अन्धविश्वाश, छुआछूत/अस्पृश्यता, भेदभाव और हिंशा जैसे प्रमुख सोच फैलाते हैं; क्या ये समाज के हित मैं है?  हिन्दू पाली शब्द शिन्दु से बना एक शब्द है और शिन्दु का मतलब नदी, सागर या समुद्र होता है । क्यों के हिन्दू शिन्दु से बना एक शब्द है इसका असली अर्थ के अनुसार हिन्दू का मतलब नदी, सागर या समुद्र भूखंड का निवासी होता है जात और काल्पनिक देवादेवियों को माननेवाला अनुयाई नहीं; क्योंके पाली बौद्ध धम्म से जुड़ा भाषा है इसलिए हिन्दू जातिवादी नहीं बौद्धवादी होता है यानि बुद्धि को फलो करनेवाला अनुयाई होता है; हिन्दुस्थान भी एक पाली शब्द है जिसका मतलब नदी, सागर या समुद्र का भूखंड होता है । हमको भ्रष्ट इतिहास और साहित्य जो की ज्यादातर धूर्त बौद्ध विरोधियों से लिखागया साहित्य और इतिहास है हमेशा भ्रम में डालते आ रहे हैं।  मुझे तो ऐसा लगता था हिन्दुस्थान मुस्लिम राजाओं के द्वारा दिया गया नाम है और स्थान एक पर्सियन या अरबिक शब्द है जिसका मतलब जगह/place होता है ।  लेकिन इसका परिक्षण करने के बाद पता चला ये पाली भाषा है और अरबिक में place को مكان (makan) कहते हैं जब की पर्सियन भाषा में محل (mahalun) कहते हैं ।  यानि हिन्दुस्थान/हिन्दुथान एक पाली शब्द है जिसका मतलब बौद्ध अनुयायिओं का नदी, सागर या समुद्र का भूखंड है । पाली में प्लेस(Place) को ṭhāna(थान) बोलते हैं और थान का अपभ्रंश स्थान है । इंडिया भी शिन्दु से पैदा एक युरोपियन अपभ्रंष है जैसे शिन्दु->शिन्दुस->शिन्दस->इंडस->इंडिया, जिसका मतलब वही नदी, सागर या समुद्र का भूखंड ही है।  हमें सदियों हिन्दू का मतलब गलत बोला गया है क्यों की इंडिया के देशी धूर्तों ने हमें हमेशा भ्रमित भ्रष्ट इतिहास पढ़ाते आ रहे हैं । असलियत में हिन्दू का मतलब नदी,सागर या समुद्र का भूखंड की बौद्ध विचारधारा माननेवाला निवासी होता है। इंडियन बौद्ध विचारधारा फॉलोअर को ही हिन्दू कहा जाता था जातिवादीयों को नहीं । जातिवादीयोंने बौद्ध धर्म को नष्ट करके इस भूखंड का सत्यानास किया है।  बौद्ध धर्म को नष्ट करके जातिवादी ब्यवस्था यहाँ के समाज के उपर थोपा गया है। तो ये लोग कौन हैं?  ये लोग कोई और नहीं हमारे ही देशी बौद्ध विचारधारा विरोधी मुलनिवाशी हैं जिन्होने जातिवादी विचारधारा और काल्पनिक देवादेवियों का दुनिया बनाया ताकि उनके अनुयायिओं को अपना वैचारिक गुलाम बनाकर उनको कंट्रोल और उनकी शोषण कर सके ।  बुद्धि से इंसान का दिमाग ज्यादा काम करता है ज्यादा तार्किक बनने के कारण सवाल ज्यादा करता है जिससे की एकतंत्र तानाशाह को नुक़सान पहुंचाता है और ठगना थोड़ा मुश्किल हो जाता है; इंसान अगर बुद्धिवान बनजाये तो धूर्त्त, ठग, बेईमान, बाहुवली और उपद्रवियों केलिए खतरा बनजाता है और ये लोग भ्रष्ट लोगों को आसानी से ख़तम करते हैं । यही कारण है की समाज के धूर्त्त, बेईमान, शातिर, बाहुबली और उपद्रवी मुलनिवाशी जातिवाद धर्म का रचना किया और क्यों की बुद्धि का धर्म बौद्ध धर्म उनका विरोधी था तो उन्होंने बौद्ध धर्म को ही तोडा नष्ट और भ्रष्ट किया लोगों को बुद्धि यानि ज्ञान यानि सत्य और तर्क से दूर रखा ताकि उनको मुर्ख रखने से उनकी कंट्रोल इजी हो सके।  अपने काल्पनिक देवादेवियों की दुनिया और गोपडवाज शास्त्र बनाके ज्यादा से ज्यादा झूठ, भ्रम और अंधविस्वाश फैलाया ताकि वह अपने विचारधारा के पिंजरें में  कैद रहे और बुद्धि से दूर होते रहे। अगर ब्यक्ति सामर्थ्यवान बनेगा तो शिक्ष्या से बुद्धिवान बन सकता है इसलिए ये जातिवाद यानि वर्णवादी समाज बनाके ये धूर्त्त, बेईमान, शातिर, बाहुबली और उपद्रवी मुलनिवाशी जैसे लोग कुछ लाभ दायक पेशे को वंशवादी बनादिया और दूसरों को वह पेशा करने से रोका  और इस तरह प्राकृतिक रिसोर्स को उनसे छीनकर बर्चस्ववादी रूलिंग क्लास बनगए यानि सबर्ण यानि वर्णवादी समाज के अगड़ी वर्ग बनगए । हर भाषिय सभ्यता समाज के धूर्त्त, बेईमान, शातिर, बाहुबली और उपद्रवी मुलनिवाशी संगठित रूपसे अपनाके इस जातिवाद विचारधारा को संगठित स्वार्थ केलिए फैलाया और इंडिया का बौद्ध धर्म को नष्ट करके जातिवादी काल्पनिक देवादेवियों छुआछूत धर्म फैला दिया ।  ये उनको अछूत बोले जो इनका विचारधारा का विरोध किया । यानि इनके विचारधारा को न मानेवाले पूर्वजों को ये आउट कास्ट यानि उनके वर्णागत समाज के बहार यानि अजाती बताया और उनको अछूत बोलकर सामाजिक घृणा पैदा किया जिसका सजा उनके पीढ़ियों को भुगतना पड़ा। जो बन जंगल में बसते थे और उनके विचारधारा से बहार थे उनको भी ये आउट कास्ट, अजाती, असवर्ण यानि अछूत बताया।  यानि उनकी विचारधारा को जो ना मानें वह सब आउटकास्ट ही हैं। इस तरह इंडिया का धूर्त्त, बेईमान, शातिर, बाहुबली और उपद्रवी मुलनिवाशी पूर्वजों ने बौद्ध धर्म को नष्ट करके जातिवाद फैलाई और उसमें सबसे आगे खुद को इलाइट कहनेवाले ब्राह्मण ही थे जो की असलियत में ये इंडिया के धूर्त्त बौद्ध विरोधी पूर्वज ही थे और अब की उनकी पीढ़ियां सायद जाने अनजानें में उस विकृति को फैलाते आ रहे हैं।  जब की सबसे ज्यादा मानसिक विकृति के शिकार ब्राह्मण वर्ग ही हैं क्यों की उनकी वैचारिक दुनिया झूठ, भ्रम और अन्धविस्वाश पर कायम है और इस दुनिया को चलानेवाले सियार वही हैं जबकि शूद्र ज्यादा सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़ित भेड बकरी वर्ग है लेकिन मानसिक विकृति का शिकार उनसे कम है और उनकी सहन शक्ति इनसे कही ज्यादा है । ब्राह्मणों की जातिवाद से इंडिया का बौद्ध(हिन्दू) भूखंड जातिवादी और जातिविरोधी वर्ग में बंट गए। बौद्ध धर्म इंडिया का सबसे पुराना विचारधारा है वैदिक विचारधारा का वर्णवाद नहीं ।  अगर वैदिक विचारधारा यहाँ का पुराना विचारधारा होता तो यहाँ से बौद्ध विचारधारा दूसरे भूखंड को फैला जातिवाद क्यों नहीं? यहाँ जितने भी परिब्राजक आये वह उनका देश की इतिहास में उसका जिक्र जरूर करते वह बौद्ध धर्म का जिक्र किया जातिवाद को क्यों नहीं? अगर इंडिया से बौद्ध धर्म फ़ैल के जापान तक चलागया तो तब अगर जातिवाद होता वह भी चलागया होता? चीनी बौद्ध भिक्षु, विद्वान, यात्री और अनुवादक जिन्होंने सातवीं शताब्दी में इंडिया की यात्रा की और हर्ष के शासनकाल के दौरान चीनी बौद्ध धर्म और इंडियन बौद्ध धर्म के बीच बातचीत का वर्णन किया क्या वह जातिवाद की कोई पुष्टि उनके लेख में किया है? इंडिया में जातिवाद हमारे देशी धूर्त्तों ने बौद्ध धर्म को ख़तम करके ही इम्प्लीमेंट किया है। जातिविरोधी पूर्वजों की पीढ़ियां उनकी उत्पीड़न के कारण ही दूसरे विचारधारा को अपनाया हुआ है। जो जातिविरोधी पूर्वजों की पीढ़ियां दूसरे विचारधारा नहीं अपनाया वह अब Sc और ST यानि अतिशूद्र बनकर उनकी जातीय व्यवस्था का हिस्सा हैं और तथाकथिक सवर्ण उनके घर में खाकर अपना सम्बेदना व्यक्त करते हैं जब की असलियत में उनकी पूर्वज इन सवर्ण के पूर्वजों से ज्यादा सक्षम और काबिल वर्ग थे क्यों की उन्होंने इनकी विकृत जातिवाद जैसे घिनोना ब्यवस्था का विरोध किया था । RSS एक जातिवादी संगठन है और उनकी पोलटिकल विंग BJP एक इंडियन जातिवादी पोलिटिकल पार्टी है । इन मूर्खों को ये पता नहीं उनका “कमल” प्रतिक जातिवादी नहीं बौद्धवादी का प्रतिक है।  बुद्ध को हमेशा कमल के आसन में बैठते हुए कई मूर्त्तियां आप को मिलजायेंगे । कमल इस्तमाल करनेवाली कल्पनावाज धर्म काल्पनिक लक्ष्मी से कमल आसन में बैठनेवाला बुद्ध बहुत पुराना है । एक भी पुराना लक्ष्मी मूर्त्ति बुद्ध के मिलनेवाले पुराना मूर्त्ति से पुराना नहीं है । कमल बौद्ध विचारधारा की प्रतिक है । हमारे भूखंड के जाति विरोधी मूलनिवासियों ने ही इस्लाम विचारधारा अपनाये हुए हैं । देश जब बिभाजन हुआ पंजाब और बांग्ला भाषी भूखंड का बिभाजन भी हुआ। पाकिस्तान में सायद पंजाब का 75% से ज्यादा प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में रह गया और 25% इंडिया में; पंजाब के ज्यादातर भाषिय मूल निवासी अब इस्लाम कबुल लिया है, कुछ सिख बनगए हैं और कुछ जातिवादी हैं । ज्यादातर प्रशिद्ध बौद्ध सम्पदा आपको उन  75% से ज्यादा प्रतिशत पाकिस्तान का पंजाब के हिस्से में मिल जायेंगे।  विश्व प्रसिद्ध  बौद्ध विश्वविद्यालय तक्षशिला उस भूखंड का भी अंश विशेष है। उनके सरकारी डाटा के अनुसार करीब 22 करोड़ वाली पाकिस्तानी मुल्क में 8.5 करोड़ लोग पंजाबी बोलते हैं जब की सचाई ये है की ये पाकिस्तान का रूलिंग भाषिय सभ्यता हैं और मेरे हिसाब से ये 12 करोड़ से भी ज्यादा होंगे, और उनकी शासन और आर्मी में इनके ही दबदबा है।   क्या जहाँ इस्लाम विचारधारा पैदा हुआ वहां कोई पंजाबी में बोलता है? वैसे बांग्ला भाषी भूखंड बारहवीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म से जुड़ा रहा और यहाँ सब बारहवीं शताब्दी तक बौद्ध विचारधारा वाले अनुयायी थे । जातिवाद ने भी इन को नहीं छोड़ा और इनके जातीवादी और जातिविरोधी मूलनिवासी का बिभाजन के कारण जातिविरोधी पूर्वजों की पीढ़ियां इस्लाम कबुल लिया और देश बिभाजन के बाद बांग्लादेश का 17 करोड़ पॉपुलेशनवाली देश में करीब 90% यानि 15.3 करोड़ लोग अब इस्लाम विचारधारा अपनालिया है।  क्या जहाँ इस्लाम विचारधारा पैदा हुआ कोई वहां बंगाली में बोलता है? प्रीपार्टिसन इंडियान ऑरिजिन का अब करीब 56 करोड़ से ज्यादा इंडियन भूखंड का मूलनिवासियों का पीढ़ियां अब इस्लाम विचारधारा अपनाये हुए हैं जिनके पूर्वज कभी जाति बिरोधी पूर्वजों की बौद्ध विचारधारा अपनाया हुआ पीढ़ियां हुआ करते थे; जिस में 3% से भी कम बाहरी मुल्क के इस्लामी पूर्वज थे जिनका इस भूखंड के साथ संकरण के कारण उनकी सत्ता भी हमारे इस भूखंड के मिट्टी में लीन है।  इनकी उर्दू भी पाली से बना हिंदी में 1% अरबिक और पर्सियन मिलाके बना हुआ है।  बौद्ध विचारधारा की रचना ज्यादातर पाली भाषा में था और जब इंडियन भूखंड में बौद्ध विचारधारा लोकप्रिय था तो बौद्ध विचारधारा को अन्य भाषीय सभ्यता में सरल से संचार केलिए पाली से प्रेरित दुषरे लोकप्रिय प्रादेशिक भाषा के मिश्रण से हिंदी की रचना हुयी । इसलिए पाली के थोड़ा सा अपभ्रंश में हिंदी का मिलता जुलता शब्द आप को मिलेंगे । हिंदी ज्यादातर नगर में इस्तेमाल किया जाने वाला भाषा था तो इसलिए इसको नगरी/नागरी कहा जाता था; धूर्त ब्राह्मणों ने अपने राज में इसके आगे देव लगाके इसको देवनागरी बताया और इस्लाम के राजाओंने फ्याब्रीकेसन में थोड़ा और भी आगे बढ़ गए इस भाषा में 1% अरबिक और पर्सियन शब्द मिलाके उसका नाम उर्दू रखदिया और इसका लेटर पर्सियन लेटर से इन्स्पायर्ड लेटर बनाके मदरसे के माध्यम से इंडियन मुस्लिमों का मातृभाषा बनादिया । ये हैं देशी लोग विदेशी सोच/विचारधारावाले लोग । जातिवादियों का अक्ल का घर में गोबर है लेकिन इनका अक्ल का घर में तरह तरह की मल भरे पड़े हैं; ये इसलिए, खुद इस्लाम विचारधारा बोलता है, अल्लाह का कोई रूप नहीं होता है इसलिए वह निराकार है । अगर अल्लाह निराकार हैं तो मन में बुला लो अल्लाह हर जगह बिद्यमान है वह अंतर मन से कहीं भी सुन लेगा उसको दिन में पांचबार गला फाड़ फाड़ के माइक में बुलाने का जरुरत क्या है? अगर माइक में चिल्ला चिल्ला के गला फाड़ फाड़ के बुलाते हो, तो कहीं ना कहीं ये मानते हो अपना काल्पनिक एंटिटी अल्लाह का कान है, तभी तो सुनेगा? अगर इनका काल्पनिक अल्लाह का कान है जिसके वजह से वह गला फाड़ फाड़ के उनको ढूंढते रहते हैं तो वह निराकार कैसे हुआ? तो ये कहीं ना कहीं ये मानते हैं हम चिल्ला के अल्लाह को बुलाएँगे तो अल्लाह हमारा बात सुनेगा क्यों उसका कान है, और कान है तो अल्लाह का तो आकर है, वह निराकार कैसे हुआ? असलियत में इस्लाम विकृति फ़ैलानेवाले धूर्त्तों ने बशीकरण साइकोलोजी का सहारा लिया है और उनके फॉलोअरों की दिमाग को पोपट यानि तोते का जैसे बनाने केलिए उनके दिमाग में दिन में पांचबार अजान के थ्रू ये डाला जाता है की तू मुस्लिम है, प्रोफेट मुहम्मद मेसेंजर ऑफ़ अल्लाह है और अल्लाह एक ही सर्बश्रेष्ट गॉड है और उसके सिबा कोई गॉड एक्जिस्ट नहीं करता; यानि दिने में पांचबार हमेसा ब्रेनवाश होना जरुरी है ताकि हम हमेशा संगठित रहे । यानि जातिवादी धूर्त्तों से बचने के चक्कर में बिदेशी इस्लाम की कट्टर विचारधारा का पिंजरें में खुद को कैद करवाना पसंद किया । यानि शातिर भेड़ियों से बचने केलिए आदमखोर मगरमच्छ का शिकार होना ज्यादा पसंद किया लेकिन कभी भी विचारधारा की प्रीडेटरों से खुदको या अपने पीढ़ियों को बचाने की कोसिस नहीं किया ।  हमारे देश की जातिवादी काल्पनिक मूर्त्तिवादी लोग हैं देशी लोग विकृत सोच मुलनिवाशी और मुस्लिम हैं देशी लोग विदेशी विकृत सोच मुलनिवाशी । जातिवादी देशी बौद्ध विरोधी धूर्त्त मुलनिवासी ही इंडिया का बौद्ध धर्म को नष्ट और भ्रष्ट किया है। जातिवादी विरोधी पूर्वजों की पीढ़ियां ही अब मुस्लिम, सिख और इसाई इत्यादि विचारधारा अपनायी हुयी हैं। वर्ल्ड का तीन प्रमुख विचारधारा ख्रिस्टियानिटी, इस्लाम और जातिवाद कौनसा काल खंड में दुनिया के सामने आये अगर उसकी बात की जाए तो दुनिया का सबसे पुराना प्रमुख लोकप्रिय विचारधारा बौद्ध विचारधारा ही था; वह ऐसे बुद्ध का जन्म 563BC में हुआ था, जीसस का जन्म कुछ बोलते हैं 4BC में हुआ था तो और कुछ बोलते हैं 3AD में हुआ था। BBC के रिसर्च के अनुसार उनकी चाहनेवाले उनको क्रुसिफिक्सन से बचालिया था और बचने के वाद वह वहां से इंडिया के कश्मीर भूखंड को पलायन किया था जहाँ वह अपना बाकि का जीबन एक बौद्ध संन्यास के रूप में बिताया था लेकिन क्रुसिफिक्सन के बाद जीसस का सामाजिक मृत्यु के बाद उनके करीबी 12 चेले उनकी नाम में ईसाई धर्म खड़ा किया और उसके बाद ये दुनिया का सबसे बड़ा धर्म बनगया । प्रोफेट मुहम्मद का जन्म 570AD में हुआ था और वह अपने एज चालिश के दसक में एक गुफा में ध्यान लगाया करते थे जिसका नाम गुफा हीरा था जहाँ उनको अल्लाह की काल्पनिक दूत एंजेल गाब्रिएल उनका काल्पनिक GOD अल्लाह के बारे में बताया और 610AD में इस्लाम दुनिया के सामने आया। प्रोफेट मुहम्मद ने अपनी काल्पनिक अल्लाह नशा का खुजलीवाली विकृत बिमारी उनके अनुयायिओं में ऐसे फैलाया के इस बिना शरीर का काल्पनिक चरित्र को वह दिन में पांच बार माइक में गला फाड़ फाड़ के ढूंढ़ते हैं और उनका लक्ष्य जो मुस्लिम नहीं हैं उसका उत्पीड़न करें और सबको मुस्लिम बनादेना है । जातिवादी बौद्ध विरोधियों की काल्पनिक देवादेवियों का दुनिया बनना ज्यादातर 800AD के बाद ही जोर पकड़ा; गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469AD को हुआ था, और उनका जातिवाद और इस्लाम विरोधी विचारधारा सिख धर्म उसके बाद ही बना; और इस तरह ये विचारधारा दुनिया के सामने आया और उनकी विचारधारा की अनुयायी लोग बनते गए । हमारे देश की जातिवादी काल्पनिक मूर्त्तिवादी लोग जो अपनेआप को हिन्दू कहते हैं वह हिन्दू नहीं पाखंडी  हिन्दू जातिवादी लोग हैं या उनको हिन्दू की अर्थ से सदियों दूर रखा गया और हिन्दू का असली अर्थ वह नहीं जानते।  इंडियन भूखंड का बौद्धवादी लोगों को ही हिन्दू कहाजाता था क्यों के हिन्दू बौद्ध भाषा पाली का शब्द शिन्दु से बना एक शब्द है।  अतीत का पाली भाषा आजका ओड़िआ भाषा है।  क्यों के वर्ल्ड में ऐसे कोई भाषा नहीं जो पाली के साथ 50% से ज्यादा सही अर्थ और सही उच्चारण के साथ मेल खा सके; इसलिए पाली ही ओड़िआ है और ओड़िआ ही पाली है; जिसका मुलनिवाशी आज करीब 5 करोड़ होंगे। पाली से ही हिंदी भाषा पैदा हुआ है संस्कृत से नहीं।  संस्कृत भी पाली से बना एक भाषा है जिसका कोई सामाजिक भाषिय भूखंड ही नहीं है।  उनकी काल्पनिक देवादेवियों की तरह इनकी संस्कृत भाषा भी नकली है।  दुनिया की कोई माँ उसकी बच्चे को संस्कृत सिखाते हुए आप को नहीं मिलेंगे क्यों के ये कभी भी इंडियान भूखंड का ना सामाजिक भाषा रहा ना कीसिका मातृभाषा; ये ब्राह्मणों की बनायी हुयी उनके काल्पनिक देवादेवियों के सम्बाद करने केलिए भाषा है जिस को बोल के वह उनके फॉलोअर को चुना लगाते आये हैं और ये सब भाषा के जननी बोलके साहित्य और इतिहास पर वर्चस्व कायम करने की कोसिस करते हैं ।  आप बोल सकते हैं ये इंडियन देशी धूर्त्तों की ठगने की भाषा है जिसको 99% लोग समझ नहीं पाते और ये उस को बोलकर लोगों चुना और चुतिया बनाते हैं; क्यों के बुद्ध का मातृभाषा पाली था और वह अपना सिक्ष्या पाली में देते थे इससे ये प्रमाणित होता है बुद्ध ओड़िआ थे नेपाली नहीं ।  इंडियन बौद्ध विरोधी देशी धूर्त्तों ने बुद्ध को हमेशा इंडिया का बहार बताने की कोसिस की। ये धूर्त्त ब्रिटिश इंडिया में काम करता जर्मनीका पुरातत्त्वज्ञ यानि आर्कियोलॉजिस्ट एलोइस एंटन फ्यूहरर के द्वारा बुद्ध का जन्म भूमि नेपाल बताया और उसकी झूठी प्रोपेगंडा आज भी  सारी दुनिया में जारी  है; इसलिए आज भी लोग ये जानते हैं बुद्ध इंडिया की नहीं नेपाल के हैं।  जब की छोटा सा तर्क ही बता देता है बुद्ध इंडिया और ओडिशा का हैं क्यों की उनकी मातृभाषा पाली था और अतीत का पाली आज का ओड़िआ है।  नेपाल की भाषा को गोर्खाली, गुरखाली या खशकुरा बोला जाता था पाली नहीं और नेपाल में कोई भी बौद्ध विचारधारावाला राजा नहीं था सीबाये जातिवादी के ।  हमारे भूखंड में सबसे बड़ा खतरनाक लोग देशी जातिवादी बौद्ध विरोधी मुलनिवाशी के पूर्वज और उनका पीढ़ियां हैं; जो विदेशी आक्रांताओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं । इनलोगों ने ही देश का सत्यानाश किया हुआ है ।  बौद्ध धम्म/धर्म को ही सनातन धर्म कहते है जातिवाद को नहीं।  जिसका सत्य से शना हुआ तन है वह है सनातन । बौद्ध विचारधारा हमेशा इंसान की मन और तन को सत्य के साथ जोड़ता है वैदिक जातपात छुआछूत और उनके झूठी भ्रम की काल्पनिक देवादेवियों की दुनिया नहीं ।  इनका विचारधारा इंसान की मन और तन को मिथ्या और भ्रम से जोड़ता है; इसलिए, क्यों के इनका मिथ्या से शना(भीगा) हुआ तन है इसलिए इनके विचारधारा को  सनातन नहीं मिनातन धर्म कहते हैं ।  जो सत्य का खोज करे वह है सनातन और ये लोग झूठ, भ्रम, अंधविस्वाश और ठगने की तरिका का खोज करते हैं ताकि लोगों की शोषण और उत्पीड़न करसकें इसलिए उनके प्रचारक सब धूर्त्त, पाखंडी, ठग, ढोंगी और भोगी होते हैं।

ब्राह्मणों का एक ही गोत्र है वह है धूर्तठग गोत्र

NB: Ignore repetitions, spelling, typing and grammatical mistakes; I will edit it in my free time.

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